दुनिया का सबसे खतरनाक बॉर्डर डूरंड लाइन क्या है? जहां अफगान और तालिबान की जंग है जारी
डूरंड लाइन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच 2640 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा, दुनिया की सबसे विवादित और खतरनाक सीमाओं में से एक है। यह सीमा पश्तून और बलूच जनजातियों के इलाके को विभाजित करती है। इसका निर्माण 1893 में ब्रिटिश इंडिया और अफगानिस्तान के बीच हुआ था, जिसका नाम ब्रिटिश अधिकारी सर हेनरी डूरंड के नाम पर रखा गया।

दुनिया के कई हिस्सों में सीमाओं को लेकर विवाद और संघर्ष होते रहते हैं, लेकिन पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच स्थित डूरंड लाइन न केवल विवाद का केंद्र है बल्कि इसे दुनिया की सबसे खतरनाक सीमाओं में से एक माना जाता है। हाल के दिनों में इस सीमा पर तनाव और बढ़ गया है। तालिबानी लड़ाके पाकिस्तान में दाखिल होकर उसकी चौकियों पर हमला कर रहे हैं। इस संघर्ष ने एक बार फिर इस बॉर्डर की पृष्ठभूमि और इससे जुड़े विवादों को उजागर कर दिया है।
क्या है डूरंड लाइन?
डूरंड लाइन पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच की अंतरराष्ट्रीय सीमा है, जिसकी लंबाई 2,640 किलोमीटर है। यह रेखा पश्तून और बलूच जनजातीय इलाकों से गुजरती है, जो इन समुदायों को दो हिस्सों में बांटती है। इस सीमा का नाम सर हेनरी डूरंड के नाम पर रखा गया है, जो 1893 में ब्रिटिश भारत के विदेश सचिव थे। इस समय ब्रिटिश भारत ने अफगानिस्तान को बफर जोन के रूप में इस्तेमाल करते हुए यह सीमा तय की थी।
ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तारवादी दौर में रूस की बढ़ती ताकत को रोकने के लिए एक सुरक्षित सीमा की आवश्यकता थी। 1893 में अफगानिस्तान के अमीर अब्दुर रहमान और ब्रिटिश सरकार के बीच एक समझौता हुआ, जिसमें इस रेखा को खींचा गया। उस समय भारत और अफगानिस्तान के बीच सीमा तय करने के लिए स्थानीय जनजातियों और उनकी सामाजिक संरचनाओं की अनदेखी की गई। डूरंड रेखा को खींचने का उद्देश्य केवल ब्रिटिश भारत की सुरक्षा सुनिश्चित करना था। लेकिन इस प्रक्रिया में पश्तून समुदाय दो देशों के बीच विभाजित हो गया। इस विभाजन के कारण आज भी पश्तून समुदाय इस रेखा को स्वीकार नहीं करता।
डूरंड लाइन पर विवाद क्यों?
अफगानिस्तान ने कभी आधिकारिक तौर पर इस रेखा को मान्यता नहीं दी है। अफगान सरकार इसे "हाइपोथेटिकल लाइन" यानी काल्पनिक सीमा मानती है। अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि वे इस रेखा को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानते हैं। तालिबान के सत्ता में आने के बाद से यह विवाद और गहरा गया है। पाकिस्तान ने उम्मीद की थी कि तालिबान की सरकार डूरंड लाइन को मान्यता देगी, लेकिन तालिबान ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। डूरंड रेखा ने पश्तून समुदाय के बीच स्थायी विभाजन पैदा कर दिया है। सीमा के दोनों ओर बसे पश्तून दशकों से अपने परिवार और कबीले के साथ रह रहे थे। लेकिन इस रेखा ने उनकी पारिवारिक संरचना को तोड़ दिया। आज भी पश्तून इस विभाजन का विरोध करते हैं और इसे अपनी आजादी के खिलाफ साजिश मानते हैं। तालिबान के सत्ता में आने के बाद से डूरंड लाइन पर तनाव बढ़ा है। तालिबान ने सीमा पर बाड़ लगाने का विरोध किया है और कई बार इसे तोड़ा भी है। तालिबान समर्थित आतंकवादी संगठन पाकिस्तान में हमले करते हैं, जिससे दोनों देशों के बीच रिश्ते और बिगड़ गए हैं।
पाकिस्तान और तालिबान के बीच जारी तनाव ने इस क्षेत्र को अस्थिर बना दिया है। पाकिस्तानी सेना और तालिबान के बीच झड़पें आए दिन की बात हो गई हैं। तालिबान का कहना है कि वे इस सीमा को नहीं मानते, जबकि पाकिस्तान इसे अपनी सुरक्षा के लिए आवश्यक मानता है। डूरंड लाइन पर मौजूद तनाव केवल सीमा विवाद का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह पूरे क्षेत्र की स्थिरता के लिए खतरा है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता करनी होगी, अन्यथा यह संघर्ष और भी भयावह रूप ले सकता है। डूरंड लाइन का विवाद केवल दो देशों की सीमाओं का मामला नहीं है, बल्कि यह एक जनजातीय, सामाजिक और राजनीतिक मुद्दा है। जब तक पश्तून समुदाय को इस विवाद में शामिल नहीं किया जाता, तब तक समाधान मुश्किल है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों को चाहिए कि वे इस मुद्दे पर संवाद करें और अपने-अपने हितों को ध्यान में रखते हुए समाधान निकालें। लेकिन तालिबान की सरकार और पाकिस्तान के बीच मौजूद अविश्वास को देखते हुए यह आसान नहीं लगता।
डूरंड लाइन केवल एक सीमा नहीं, बल्कि एशिया की भू-राजनीतिक स्थिति का प्रतीक है। इसका इतिहास और वर्तमान दोनों ही इस बात की ओर इशारा करते हैं कि इसे लेकर संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक इसके मूल कारणों को समझकर उनका समाधान नहीं किया जाता। यह सीमा केवल दो देशों को नहीं, बल्कि एक पूरे समुदाय को बांटती है, जो आज भी अपने एकीकरण की उम्मीद लगाए बैठा है।
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