इजरायल का लेबनान में बड़ा ड्रोन अटैक, मारा गया हिजबुल्लाह का महत्वपूर्ण सदस्य
लेबनान में इजरायली ड्रोन हमले में हिजबुल्लाह के वरिष्ठ सदस्य की मौत के बाद सीमा पर तनाव और गहराया। जानिए इस हमले के पीछे की पूरी कहानी, हिजबुल्लाह की भूमिका और इजरायल की रणनीति.

बेरूत की गीली मिट्टी में अभी तक पिछली लड़ाइयों के धुएं का असर बाकी था, कि तभी 20 अप्रैल की सुबह एक धमाके ने सबको झकझोर दिया. दक्षिणी लेबनान के कौतारियत अल सियाद नामक इलाके में एक कार में अचानक आग लग गई यह कोई हादसा नहीं था, बल्कि एक सटीक ड्रोन हमला था, जिसे अंजाम दिया था इजरायली सेना ने.
जिस गाड़ी को निशाना बनाया गया, उसमें सवार हिजबुल्लाह का एक महत्वपूर्ण सदस्य हुसैन नस्र था. वह सिर्फ एक लड़ाका नहीं था, बल्कि उस नेटवर्क का अहम हिस्सा था जो लेबनान और सीरिया की सीमाओं के बीच हथियारों की तस्करी करता था. उसे हिजबुल्लाह की यूनिट 4400 का डिप्टी कमांडर माना जाता है एक ऐसी यूनिट जो लंबे समय से ईरानी मदद से इजरायल की सुरक्षा में सेंध लगाने की कोशिश कर रही थी.
हमले का अंदाज़ बिल्कुल वैसा था जैसा इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद और सेना की रणनीति रही है बिना किसी चेतावनी के, दुश्मन के दिल पर वार. बताया गया कि हमला एक अत्याधुनिक ड्रोन से किया गया था जो लेबनान की सीमा पार करते ही बेहद कम ऊँचाई पर उड़ता हुआ टारगेट तक पहुँचा. कार पर मिसाइल दागी गई और पल भर में सबकुछ राख में तब्दील हो गया. वहां मौजूद लोगों को कुछ समझ में आता, इससे पहले ही चारों ओर अफरा-तफरी मच गई. मौके पर एंबुलेंस पहुंची, घायल को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन हुसैन नस्र की मौत घटनास्थल पर ही हो गई थी.
कौन था हुसैन नस्र?
हुसैन नस्र का नाम आम लोगों को शायद नया लगे, लेकिन सुरक्षा एजेंसियों की नज़रों में वो एक बड़ा नाम था. वह लेबनान के हारौफ शहर का रहने वाला था और हिजबुल्लाह की सैन्य और तस्करी इकाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था. इजरायली सेना का दावा है कि हुसैन, ईरानी एजेंटों और बेरूत एयरपोर्ट के कर्मचारियों के साथ मिलकर हथियारों, गोला-बारूद और फंड्स की हेराफेरी करता था. उसका नेटवर्क सीरिया और लेबनान के बॉर्डर पर फैला हुआ था और यह सीधे-सीधे इजरायल की सुरक्षा को चुनौती देने वाली गतिविधियों से जुड़ा था.
हिजबुल्लाह और इजरायल का पुराना टकराव
इजरायल और हिजबुल्लाह के बीच तनाव कोई नया नहीं है. 2006 की भीषण जंग के बाद दोनों पक्षों ने युद्धविराम की घोषणा तो कर दी थी, लेकिन सीमाओं पर तैनात टुकड़ियाँ और समय-समय पर होने वाली झड़पें अब भी इस दुश्मनी को ज़िंदा रखती हैं. 2024 में 27 नवंबर को फिर एक बार युद्धविराम लागू किया गया था, लेकिन तभी से इजरायली सेना आरोप लगाती रही है कि हिजबुल्लाह उसकी सीमाओं के करीब अपनी गतिविधियाँ तेज कर रहा है.
इस घटना के बाद लेबनान की राजनीति में भी खलबली मच गई. राष्ट्रपति जोसेफ औन ने एक बयान में दोहराया कि “देश की रक्षा का अधिकार केवल लेबनानी सेना के पास होना चाहिए, न कि किसी निजी सशस्त्र संगठन के पास.” उन्होंने ये भी स्वीकार किया कि हथियारों पर प्रतिबंध लगाने की योजना ज़रूर है, लेकिन हालात अभी इसके अनुकूल नहीं हैं. राष्ट्रपति का यह बयान कहीं न कहीं यह संकेत देता है कि सरकार को भी हिजबुल्लाह के प्रभाव और समर्थन से निपटने में कठिनाई हो रही है.
हमले के तुरंत बाद इजरायल ने उत्तरी सीमा पर अपनी सैन्य गतिविधियाँ बढ़ा दीं. कई चौकियों पर नई तैनाती की गई और आसमान में निगरानी ड्रोन लगातार उड़ते रहे. वहीं, लेबनानी सेना ने सैदा-जहरानी इलाके में छापेमारी कर कई रॉकेट और लॉन्चिंग प्लेटफॉर्म बरामद किए. यह इस बात का संकेत है कि संघर्ष और भड़क सकता था अगर समय रहते इन हथियारों को कब्जे में न लिया जाता.
क्या यह एक नई जंग की शुरुआत है?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह हमला इजरायल की उस नीति का हिस्सा है, जिसे वह “रक्षात्मक आक्रामकता” कहता है. यानी जो भी खतरा लगे, उसे पहले ही खत्म कर दो. लेकिन यह नीति कब एक बड़े युद्ध का रूप ले लेती है, ये कहना मुश्किल है. हिजबुल्लाह अभी तक इस हमले पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दे पाया है, लेकिन उनके पिछले बयानों और गतिविधियों को देखकर माना जा रहा है कि इस हमले का बदला लेने की कोशिश की जा सकती है.
इस घटना ने एक बार फिर बता दिया कि पश्चिम एशिया की राजनीति कितनी नाज़ुक, जटिल और विस्फोटक है. एक व्यक्ति की मौत, जो शायद किसी आम खबर की तरह लग सकती है, लेकिन उस व्यक्ति के पीछे छिपा नेटवर्क, उसकी भूमिका और उसके मारे जाने के बाद होने वाली प्रतिक्रियाएं सब कुछ एक नई हलचल को जन्म दे सकती हैं.
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