THURSDAY 24 APRIL 2025
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क्या आप भी कर सकते हैं सरकार पर केस ? जानें पूरा कानूनी प्रोसेस

दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क की कंपनी X Corp ने भारत सरकार पर आईटी एक्ट के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इस मामले ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है—क्या कोई भी व्यक्ति सरकार के खिलाफ केस कर सकता है?

क्या आप भी कर सकते हैं सरकार पर केस ? जानें पूरा कानूनी प्रोसेस
एलन मस्क की कंपनी 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) ने हाल ही में भारत सरकार के खिलाफ कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। कंपनी ने आरोप लगाया है कि भारत सरकार आईटी अधिनियम की धारा 79(3)(बी) का गलत इस्तेमाल कर सोशल मीडिया कंटेंट को सेंसर कर रही है। इस याचिका में कहा गया है कि सरकार बिना उचित कारण बताए पोस्ट हटवा रही है और प्रभावित यूजर्स को कोई कानूनी सुनवाई का मौका नहीं दिया जा रहा। यह मामला भारत में डिजिटल स्वतंत्रता और सरकारी नियंत्रण के बीच चल रही बहस को और तेज कर रहा है। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या एलन मस्क की तरह कोई भी भारत सरकार पर मुकदमा कर सकता है? आइए जानते हैं।

एलन मस्क का क्या है आरोप?

याचिका में 'एक्स' की ओर से कहा गया है कि आईटी अधिनियम की धारा 69ए में यह साफ लिखा गया है कि सरकार किन परिस्थितियों में इंटरनेट कंटेंट को ब्लॉक कर सकती है। कंपनी का दावा है कि सरकार इन नियमों का पालन नहीं कर रही है और मनमाने ढंग से कंटेंट हटाने के आदेश दे रही है।

कंपनी ने 2015 के 'श्रेया सिंघल केस' का हवाला भी दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि बिना उचित कारण बताए किसी भी डिजिटल कंटेंट को हटाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है। 'एक्स' का कहना है कि सरकार को हर ब्लॉक किए गए कंटेंट का उचित कारण देना चाहिए और इस फैसले को अदालत में चुनौती देने का अधिकार भी होना चाहिए।

कोई भी कर सकता है भारत सरकार पर केस?

अब बड़ा सवाल यह है कि क्या कोई आम नागरिक भी भारत सरकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर सकता है? तो इसका उत्तर है, हां भारत का संविधान हर नागरिक को अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा करने का अधिकार देता है। यदि सरकार का कोई फैसला या कानून व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो वह अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।

इसके लिए निम्नलिखित कानूनी उपाय उपलब्ध हैं। जब सरकार का कोई फैसला कई लोगों को प्रभावित करता है, तो कोई भी नागरिक जनहित याचिका (PIL) दायर कर सकता है। यह याचिका हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा सकती है। PIL का मकसद सिर्फ सामाजिक हितों की रक्षा करना होता है।

रिट याचिका (Writ Petition): अगर सरकार का कोई आदेश व्यक्ति विशेष के मौलिक अधिकारों का हनन करता है, तो वह रिट याचिका दायर कर सकता है।
यह हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों में दायर की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 32 और हाईकोर्ट में अनुच्छेद 226 के तहत यह अधिकार दिया गया है।

संवैधानिक याचिका (Constitutional Petition): अगर सरकार का कोई कानून संविधान के विरुद्ध है, तो इसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है। यह मामला सीधे सुप्रीम कोर्ट में दायर किया जा सकता है।

नागरिक अधिकार आयोग (NHRC) में शिकायत: यदि सरकार का कोई आदेश नागरिक अधिकारों के खिलाफ जाता है, तो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) में शिकायत दर्ज की जा सकती है।

ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि इन मामलों की सुनवाई कहां होती है? तो आपको बता दें कि सरकार के खिलाफ याचिका किस अदालत में दायर होगी, यह इस पर निर्भर करता है कि मामला कितना गंभीर है। अगर मामला किसी राज्य से जुड़ा हुआ है, तो राज्य के हाईकोर्ट में याचिका दायर की जाती है। उदाहरण के लिए, एलन मस्क की 'एक्स' ने कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। अगर मामला राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव डालता है, तो इसे सीधे सुप्रीम कोर्ट में दायर किया जा सकता है। खासकर मौलिक अधिकारों से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट सीधा हस्तक्षेप कर सकता है। जबकि कुछ मामलों में आईटी ट्रिब्यूनल या राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) भी सुनवाई कर सकता है।

क्या भारत सरकार 'एक्स' पर कोई कार्रवाई कर सकती है?

भारत सरकार के पास कई विकल्प हैं, जिससे वह 'एक्स' (X Corp) के खिलाफ जवाबी कार्रवाई कर सकती है। सरकार अगर चाहे, तो आईटी अधिनियम की धारा 69ए के तहत 'एक्स' पर प्रतिबंध लगा सकती है, जैसा कि टिकटॉक और कई चीनी ऐप्स के साथ हुआ था। सरकार अदालत में अपने फैसले का बचाव कर सकती है और यह साबित कर सकती है कि कंटेंट हटाने का निर्णय देशहित में था। भारत सरकार 'एक्स' पर जुर्माना लगा सकती है, अगर अदालत मानती है कि कंपनी ने गलत तरीके से सरकार को बदनाम किया है।

एलन मस्क की कंपनी 'एक्स' और भारत सरकार के बीच यह कानूनी लड़ाई डिजिटल स्वतंत्रता बनाम सरकारी नियंत्रण पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर रही है।अगरअदालत यह मानती है कि सरकार ने बिना उचित कारण बताए सोशल मीडिया कंटेंट हटाया, तो यह 'एक्स' के पक्ष में जा सकता है। लेकिन अगर सरकार यह साबित कर देती है कि उसके निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा, कानून-व्यवस्था या सामाजिक स्थिरता के लिए जरूरी थे, तो अदालत सरकार के पक्ष में फैसला सुना सकती है।

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