हिंदू थे अब्दुल्ला के पूर्वज, सत्ता के लिए किया ऐसा काम, जानकारी कर देगी हैरान!
दशकों से अब्दुल्ला परिवार का जम्मू कश्मीर पर क़ब्ज़ा रहा है। लेकिन कहा जाता है कि शेख़ अब्दुल्ला के पूर्वज हिंदू थे। सत्ता के लिए कई खेल खेले। अपना धर्म परिवर्तन तक कर लिया था।

भारत की सत्ता में कई परिवारों का राज रहा। और ये परिवार आजतक सियासी दांव में उलझे हुए हैं। फिर चाहें गांधी परिवार हो। या फिर सपा का सियासी ख़ानदान। सबने राजनीति में खूब दांव पेंच खेले। लेकिन देश की राजनीति में एक ऐसा भी परिवार है जिसने सत्ता के सिंहासन के लिए ना सिर्फ़ अपने धर्म को दांव पर लगा दिया। बल्कि ईमान के साथ भी खिलवाड़ किया। और ये परिवार कोई और नहीं बल्कि अब्दुल्ला परिवार। जिसके इतिहास के पीढ़ी दर पीढ़ी पन्ने पलटेंगे तो कश्मीर को जकड़ने का ऐसा राज बाहर आएगा। कि आपका खून भी खौल जाएगा। नमस्कार मैं आपके साथ आप देख रहे हैं NMF NEWS। आज आपको बताउँगी जम्मू कश्मीर के अब्दुल्ला परिवार का वो गहरा राज। जिनसे अपने जाल में फँसाकर घाटी को किया बर्बाद।
अब्दुल्ला परिवार की कहानी झेलम नदी के किनारे बसे श्रीनगर के सौरा इलाक़े से शुरू होती है। रजनीकांत पुराणिक ने अपनी किताब नेहरू के 97 मेजर ब्लेंडर में लिखा की। अब्दुल्ला परिवार के पूर्वज हिंदू ब्राह्मण थे। शेख़ अब्दुल्ला परदादा का नाम बार मुकुंद कोल और दादा का नाम राघव राम कोल था। 1766 में सूफ़ी मीर अब्दुल रशीद बैहाकी के प्रभाव में आकर उनके पूर्वजों ने इस्लाम अपना लिया था। साल 1905 में शेख़ अब्दुल्ला के जन्म से दो हफ़्ते पहले ही उनके पिता शेख़ मोहम्मद इब्राहिम का इंतकाल हो चुका था। वो अपने भाई बहनों में सबसे छोटे थे। बचपन में शेख पढ़ाई के साथ साथ अपनी पुश्तैनी शॉल की दुकान पर भी काम करते थे। हायर स्टडीज के लिए शेख़ अब्दुल्ला मुस्लिम अलीगढ़ यूनिवर्सिटी पहुँचे। 25 साल की उम्र में मास्टर करने के बाद वो घाटी वापस लौट आए। और कश्मीर में डोगरा शासन के समय कश्मीरी मुस्लिमों के हक़ के लिए घाटी में सक्रीय हो गए। इसी दौरान 1932 में चौधरी गुलाम अब्बास के नेतृत्व में एक पार्टी बनी। जिसका नाम मुस्लिम कॉन्फ़्रेंस रखा गया। इस पार्टी का गठन महाराजा हरि सिंह की सत्ता को चुनौती देने के लिए किया गया था। शेख़ अब्दुल्ला इस पार्टी से जुड़े और अपनी लीडरशिप स्किल से फ़ेमस हो गए। 1937 में अब्दुल ग़फ़्फ़ार खान ने उस वक़्त के कांग्रेस अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू से शेख़ अब्दुल्ला को मिलवाया। जिनसे मिलने के बाद शेख़ अब्दुल्ला के धर्म को लेकर विचार बदले। 14 जून 1938 को उन्होने मुस्लिम कॉन्फ़्रेंस का नाम बदलकर नेशनल कॉन्फ़्रेंस कर दिया। क्योंकि शेख़ अब्दुल्ला कश्मीर को भारत में विलय से पहले एक मुस्लिम देश बनाना चाहते थे। और यहीं से कश्मीर के हिंदुओं पर अत्याचार की कहानी की शुरुआत हुई । क्योंकि उन्हें अब्दुल्ला परिवार के राज में जो कुछ झेलना पड़ा। उसकी कहानी आज भी रोंगटे खड़े कर देती है। हिंदुओं का नरसंहार। आतंकियों की प्रहार। पलायन का वार। सब कश्मीरी हिंदुओं ने इसलिए झेला। क्योंकि अब्दुल्ला परिवार के राज़ में अगर किसी की आवाज़ दबाई गई तो वो थे कश्मीर पंडित। दरअसल जब शेख़ अब्दुल्ला ने अपनी पार्टी का नाम बदला तो चौधरी गुलाम अब्बास ने कहा था कि शेख़ अब्दुल्ला अब हमारे हाथ से निकल गया। और उन्होंने नेहरू को अपना राजनीति गुरू मान लिया था। नेहरू भी अब्दुल्ला पर बहुत भरोसा करने लगे। उन्हें अपना भाई तक मान लिया। और यही नेहरू की सबसे बड़ी गलती थी। क्यों क्योंकि 1950 तक कश्मीर का मसला यूएन में पहुंच चुका था। भारत सरकार ने राज़्य को धारा 370 के तहत विशेष स्वायत्ता भी दे दी थी। शेख़ अब्दुल्ला नेहरू की इच्छा के तहत कश्मीर की सत्ता संभाले हुए थे। लेकिन इस दौरान काफ़ी कुछ ऐसा हुआ जिससे अब्दुल्ला की नियत पर सवाल उठने लगे। 1950 में नेहरू ने अपनी बहन विजयलक्ष्मी पंडित को कई पत्र लिखे। और कहा कि ।
" शेख़ अब्दुल्ला अब सही व्यवहार नहीं कर रहे हैं वे कश्मीर मसले पर ख़राब बर्ताव कर रहे हैं ऐसा लगता है कि वो हमसे संघर्ष करना चाहते हैं वो ग़लत लोगों से घिर गए हैं जिनकी सलाह मान रहे हैं मुझे अब शक सा होने लगा है"
नेहरु का शक कुछ रोज बाद ही सही साबित हुआ। 29 सितंबर 1959 को शेख़ अब्दुल्ला अमेरिकी राजदूत लॉय हेंडरसन से मिले और कहा की उनकी राय में कश्मीर को आज़ाद होना चाहिए यहाँ के ज़्यादातर लोग ऐसा ही चाहते हैं। जिसके बाद नेशनल क़ॉन्फेंस में फूट पड़ गई। शेख़ अब्दुल्ला की कुर्सी चली गई। लेकिन ये कुर्सी के पाने के लिए भी शेख़ अब्दुल्ला ने काफ़ी दिमाग़ लड़ाया था। कश्मीर के भारत में विलय पर आधिकारिक फ़ैसला लेने के लिए कश्मीर के राजा हरि सिंह और शेख़ अब्दुल्ला ने दिल्ली से थोड़ा समय मांगा था। शेख़ अब्दुल्ला दो राष्ट्र सिद्धांत के जरिए पाकिस्तान बनने का विरोध कर रहे थे। इसकी वजह से वो कट्टर मुस्लिम नेताओं के निशाने पर आए। अक्टूबर 1947 में भारत या पाकिस्तान में मिलने पर कश्मीर कोई आधिकारिक फ़ैसला करता। इससे पहले ही पाकिस्तानी सेना के समर्थन से क़व्वालियों ने कश्मीर पर हमला किया। जिसके बाद कश्मीर के राजा हरी सिंह ने जल्दबाज़ी में कश्मीर को भारत में विलय का फ़ैसला ले लिया। और जवाहर लाल नेहरू के दोस्त बन चुके शेख़ अब्दुल्ला ने भी इस फ़ैसले का समर्थन किया। 1947 में राजा हरि सिंह पर दवाब बनाकर उन्होंने शेख़ को कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त करवाया। आज़ादी के बाद नेहरू कश्मीर के मसले पर शेख़ अब्दुल्ला से ज़रूर बता करते थे । हालाँकि 1953 में नेहरू ने शेख़ अब्दुल्ला को पद से हटाकर जेल में डलवा दिया था। कहा जाता है कि शेख़ अब्दुल्ला को प्रधानमंत्री के पद से हटाए जाने के पीछे उनकी भारत सरकार विरोधी नीतियाँ मानी जाती है वो 1947 से 1953 के बीच कई मौक़ों पर कश्मीर को आज़ाद देश बनाने की भी बात कह चुके थे।
11 साल जेल में रहने के बाद साल 1964 में शेख़ अब्दुल्ला को रिहा किया गया। तब तक अब्दुल्ला कश्मीर की आज़ादी की मांग एक तरफ़ रख चुके थे। इस एक्शन के बावजूद जब 27 मई 1964 को जवाहर लाल नेहरू का निधन हुआ तो शेख़ अब्दुल्ला खूब रोए थे। शेख अब्दुल्ला अपनी बेटी ख़ालिदा के करीबी थे। लेकिन जब सत्ता सौंपने का मन बनाया तो अपने बेटे फारुख अब्दुल्ला को चुना। फारुख 1965 में पढ़ाई करने लंदन गए और वहीं ब्रिटिश महिला से शादी करके ब्रिटेन की नागरिकता ले ली। 1975 में पारिवारिक वजहों के चलते फारुख अब्दुल्ला को कश्मीर लौटना पड़ा। जिसके बाद शेख़ अब्दुल्ला ने कश्मीर और पार्टी की कमान फारुख अब्दुल्ला के हाथों में दी।
1980 में श्रीनगर सीट से फारुख अब्दुल्ला को चुनावी मैदान में उतारा गया। सितंबर 1982 में शेख़ अब्दुल्ला के निधन के बाद पार्टी और राज्य की सत्ता में क़ाबिज़ फारुख के परिवार में रार छिड़ गई। जिसके बाद मुख्यमंत्री पद फारुख के हाथों से चला गया। लेकिन 1996 में चुनाव हुए नेशनल कॉन्फ़्रेंस प्रचंड बहुमत के साथ जीती। फारुख के बेटे उमर अब्दुल्ला राजनीति में सक्रीय हुए। 1998 में लोकसभा चुनाव जीते और केंद्र की एनडीए सरकार में मंत्री बने। 2001 में वो देश के सबसे कम उम्र के विदेश मंत्री बने।हालाँकि 17 महीने के बाद ही उन्होंने इस पद से इस्तीफ़ा दे दिया। 2002 में फारुख अब्दुल्ला ने उमर अब्दिुल्ला को नेशनल कॉन्फ़्रेंस का अध्यक्ष घोषित कर दिया। जिसके बाद 2008 में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ़्रेंस के गठबंधन से उमर अब्दुल्ला तीसरी पीढ़ी से जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बने। इस तरह के अब्दुल्ला परिवार का राज कश्मीर पर रहा। और एक बार फिर उमर अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर की कमान सँभालने जा रहे हैं।
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