क्या यमुना का भाग्य भी बदलेगा? गुजरात की नदियों से क्या सबक लिया जा सकता है?
यमुना नदी, जो कभी दिल्ली और उत्तर भारत की जीवनरेखा मानी जाती थी, आज गंभीर प्रदूषण और अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। गंगा की सबसे महत्वपूर्ण सहायक नदी होने के बावजूद, यमुना का पानी खासकर दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रों में जहरीला हो चुका है।

दिल्ली और उत्तर भारत की जीवन रेखा कही जाने वाली यमुना नदी आज अपनी पहचान खोती जा रही है। कभी हजारों गांवों और शहरों को सींचने वाली यह नदी अब गंदगी, झाग और जहरीले रसायनों का गढ़ बन चुकी है। दिल्ली में प्रवेश करने से पहले ही यह नदी सीवेज, औद्योगिक कचरे और प्लास्टिक के ढेर में तब्दील हो जाती है। लेकिन अब सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गुजरात कीसाबरमती नदी की तरह यमुना नदी की भी कायाकल्प कर सकते हैं? क्या यमुना को फिर से साफ, सुंदर और जीवनदायिनी बनाया जा सकता है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए, साबरमती नदी का पुनरुद्धार एक प्रमुख सफल कहानी है। साबरमती रिवरफ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के तहत नदी के दोनों किनारों पर बाढ़ नियंत्रण, प्रदूषण नियंत्रण, और शहरी विकास के माध्यम से नदी को एक सुंदर और स्वच्छ स्वरूप दिया गया। यह परियोजना न केवल पर्यावरणीय सुधार का उदाहरण है, बल्कि अहमदाबाद शहर के लिए एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी बन गई है।
गुजरात की नदियों का कायाकल्प – मोदी मॉडल
अहमदाबाद के मध्य से बहने वाली साबरमती नदी का पानी कुछ साल पहले इतना प्रदूषित हो गया था कि इसमें ऑक्सीजन का स्तर लगभग शून्य पहुंच गया था और यह एक जहरीले जलाशय में तब्दील हो गई थी। 2019 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, साबरमती नदी का पानी जैविक ऑक्सीजन मांग (BOD) के पैमाने पर अत्यधिक प्रदूषित था। जैविक ऑक्सीजन मांग का उच्च स्तर पानी में मौजूद ऑक्सीजन की अत्यधिक खपत को दर्शाता है, जिससे जलीय जीवन समाप्त हो जाता है। साबरमती नदी जो कभी एक सूखी धारा बन गई थी, उसे भी साबरमती रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट के जरिए नया जीवन दिया गया। अहमदाबाद में यह अब सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि शहर का आकर्षण और पर्यटन स्थल बन चुकी है।
यमुना के लिए अपनाया जाएगा गुजरात मॉडल?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने "नमामि गंगे" की तरह "नमामि यमुना" परियोजना की भी शुरुआत की है। दिल्ली सरकार भी यमुना को साफ करने के लिए कई वादे कर चुकी है, लेकिन अब तक कोई बड़ा बदलाव नजर नहीं आया है। यमुना को साफ करने के लिए तीन बड़े कदम उठाने की जरूरत होगी।
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (STP) की क्षमता बढ़ाना: दिल्ली और आसपास के शहरों में सीवेज का 70% हिस्सा बिना ट्रीटमेंट के सीधे यमुना में चला जाता है। इसे रोकने के लिए नई तकनीक के साथ अधिक संख्या में ट्रीटमेंट प्लांट्स लगाने होंगे।
औद्योगिक कचरे पर सख्त नियंत्रण: दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में हजारों फैक्ट्रियां बिना ट्रीटमेंट किए हुए रसायनों को यमुना में बहा रही हैं। यदि गुजरात की तरह यहां भी सख्त पर्यावरण कानून लागू किए जाएं, तो स्थिति में सुधार हो सकता है।
रिवरफ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट: अहमदाबाद के साबरमती रिवरफ्रंट की तरह दिल्ली में यमुना रिवरफ्रंट विकसित करने की योजना बनाई जा रही है। इससे न सिर्फ नदी साफ होगी, बल्कि पर्यटन और रोजगार के नए अवसर भी खुलेंगे।
क्यों अब तक यमुना को साफ नहीं किया जा सका?
दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार पिछले 30 सालों से यमुना सफाई के लिए हजारों करोड़ रुपये खर्च कर चुकी हैं, लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं।
राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: केंद्र और राज्य सरकारों में तालमेल की कमी के कारण कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया।
अवैध निर्माण और अतिक्रमण: यमुना के किनारे अवैध कॉलोनियां और झुग्गी बस्तियां बस चुकी हैं, जो सीधे नदी में गंदगी डाल रही हैं।
लोगों की जागरूकता की कमी: गंगा सफाई अभियान की तरह यमुना के लिए भी बड़े स्तर पर जनभागीदारी की जरूरत है।
क्या मोदी सरकार यमुना को नया जीवन दे पाएगी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने जब नमामि गंगे परियोजना शुरू की थी, तब भी लोग आशंकित थे। लेकिन आज गंगा में काफी सुधार देखने को मिला है। अब यही उम्मीद यमुना के लिए भी लगाई जा रही है। हाल ही में दिल्ली में यमुना की सफाई को लेकर केंद्र सरकार ने 6,000 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट की घोषणा की है। इसके तहत दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स, वाटर रीसाइकलिंग सिस्टम और रिवरफ्रंट डेवलपमेंट का काम शुरू किया जाएगा। केंद्र सरकार ने यह भी कहा है कि 2026 तक यमुना को 70% तक साफ कर दिया जाएगा। अगर यह योजना सफल होती है, तो यह भारत के सबसे बड़े पर्यावरणीय सुधारों में से एक होगा।
सिर्फ सरकार के प्रयासों से यमुना को बचाया नहीं जा सकता। गुजरात के साबरमती मॉडल की सफलता में स्थानीय लोगों की भागीदारी भी बहुत अहम रही। दिल्ली और उत्तर भारत के लोगों को भी यमुना को साफ रखने की जिम्मेदारी लेनी होगी। कचरा और प्लास्टिक को नदी में फेंकने से बचें। सीवेज और औद्योगिक कचरे की रिपोर्ट करें। यमुना सफाई अभियानों में भाग लें।
गुजरात में नर्मदा और साबरमती नदियों को पुनर्जीवित करने के बाद अब सभी की निगाहें यमुना पर टिकी हैं। अगर मोदी सरकार ने सख्त फैसले और गुजरात मॉडल को अपनाया, तो यमुना को फिर से निर्मल और स्वच्छ बनाया जा सकता है। यमुना सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों के जीवन का आधार है। अगर इसे सही समय पर बचाया नहीं गया, तो आने वाली पीढ़ियां सिर्फ इसके इतिहास को ही पढ़ेंगी। अब यह देखना होगा कि क्या मोदी सरकार इस ऐतिहासिक बदलाव को संभव बना पाएगी?
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