भारत-सऊदी अरब की रिफाइनरी डील से क्यों घबरा रहा पाकिस्तान? जानें क्यों खास है यह डील?
सऊदी अरब ने भारत में दो विशाल रिफाइनरी बनाने का फैसला किया है, जिसमें अरबों रुपये का निवेश किया जाएगा। सऊदी की कंपनी अरामको, बीपीसीएल और ओएनजीसी जैसी भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाएगी। यह डील न केवल भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत बनाएगी, बल्कि पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों की चिंताओं को भी बढ़ा देगी।

भारत और सऊदी अरब के बीच एक ऐसी डील पर सहमति बनी है जो न सिर्फ भारत की आर्थिक और ऊर्जा ताकत को बढ़ाएगी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी उसका कद ऊँचा करेगी. इस डील के तहत सऊदी अरब की तेल कंपनी 'अरामको' भारत में दो बड़ी रिफाइनरियाँ बनाएगी, जिनमें उसकी 26% हिस्सेदारी होगी. ये फैसला तब सामने आया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की जेद्दा में एक अहम बैठक हुई.
लेकिन इस डील की सबसे खास बात ये नहीं कि इसमें कितने करोड़ लगेंगे, या ये किस राज्य में बनेगी. असली कहानी इसकी गहराई में है. ये डील सऊदी अरब के लिए भारत के दरवाज़े खोलती है, लेकिन साथ ही पाकिस्तान के लिए एक कड़वी हकीकत बनकर उभरेगी.
सऊदी अरब को भारत में क्यों चाहिए जगह?
अरामको, सऊदी अरब की सबसे बड़ी और ताकतवर कंपनी, जो विश्व की सबसे मूल्यवान कंपनियों में से एक है, अब भारत में अपने पाँव मजबूत करना चाहती है. वजह साफ है – भविष्य. तेल के बाज़ार में बदलाव आ रहा है. दुनिया धीरे-धीरे ग्रीन एनर्जी की तरफ बढ़ रही है. चीन की मांग घट रही है. अमेरिका अपने घरेलू उत्पादन पर निर्भर हो चुका है. ऐसे में सऊदी अरब को ऐसे बाज़ार की ज़रूरत है जो स्थायी हो, बड़ा हो, और भरोसेमंद हो – और भारत इन सभी मानकों पर खरा उतरता है.
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है. यहाँ की आबादी, अर्थव्यवस्था और विकास की गति को देखते हुए आने वाले 20-30 सालों तक तेल की मांग में गिरावट की संभावना नहीं है. ऐसे में अगर सऊदी अरब भारत में निवेश करता है, तो वह केवल एक व्यापारिक सौदा नहीं होता, बल्कि दीर्घकालिक रणनीतिक संबंध बन जाते हैं.
नाकामियों से सबक लेकर फिर मैदान में सऊदी
ये पहली बार नहीं है जब अरामको भारत में निवेश करने की कोशिश कर रही है. 2018 में भी एक बड़ी योजना बनी थी – महाराष्ट्र के रत्नागिरी में इंडियन ऑयल, बीपीसीएल और एचपीसीएल के साथ मिलकर एक मेगा रिफाइनरी बनाने की. 60 मिलियन टन प्रति वर्ष की इस परियोजना में अरामको की 50% हिस्सेदारी थी. लेकिन भूमि अधिग्रहण में पेंच फँस गया और मामला वहीं ठंडा पड़ गया.
इसके बाद 2019 में रिलायंस इंडस्ट्रीज के साथ भी सौदे की बातचीत हुई, जहाँ अरामको 15 अरब डॉलर में 20% हिस्सेदारी खरीदने वाला था. लेकिन वैल्यूएशन पर विवाद हुआ और डील टूट गई. अब अरामको ने एक नया रास्ता चुना है दो रिफाइनरी, अलग-अलग स्थानों पर, और कम हिस्सेदारी में निवेश. शायद यही उसका जीत का फॉर्मूला हो.
भारत की चालाकी और सऊदी अरब की शर्त
अरामको चाहती है कि जिन रिफाइनरियों में वह निवेश करे, वे पूरे जीवनकाल में ज़्यादातर कच्चा तेल सऊदी अरब से ही लें. यह उसकी रणनीति है जिससे उसका तेल निर्यात सुनिश्चित हो जाए. लेकिन भारतीय कंपनियाँ इतनी आसानी से मानने वाली नहीं. उनका साफ कहना है – अगर रियायतें मिलें, जैसे कीमत में छूट, ट्रांसपोर्टेशन में राहत या 90 दिन की क्रेडिट सुविधा, तो ही बात आगे बढ़ेगी.
इस डील की बातचीत भारत पेट्रोलियम (BPCL) और ओएनजीसी (ONGC) के साथ हो रही है. BPCL आंध्र प्रदेश में एक रिफाइनरी-पेट्रोकेमिकल प्लांट तैयार कर रहा है, जिसकी क्षमता 9-12 मिलियन टन सालाना हो सकती है. लागत 95,000 करोड़ रुपये तक पहुँच सकती है. इसमें अरामको को लगभग 9,000 करोड़ रुपये लगाने पड़ेंगे.
वहीं ONGC उत्तर प्रदेश में एक नई रिफाइनरी पर विचार कर रहा है, और बातचीत चल रही है कि अरामको 26% तक की हिस्सेदारी ले. प्रयागराज के पास वह ज़मीन देखी जा रही है जो BPCL ने पहले खरीदी थी लेकिन काम नहीं शुरू हुआ.
पाकिस्तान को क्यों चुभेगा ये सौदा?
अब बात करते हैं पाकिस्तान की. भारत और पाकिस्तान के रिश्ते वैसे भी तल्ख हैं, लेकिन जब सऊदी अरब जैसे इस्लामी देशों का झुकाव भारत की ओर होता है, तो इस्लामाबाद को सबसे ज़्यादा दर्द होता है. सऊदी अरब ने हाल ही में भारत में हुए आतंकी हमले – पहलगाम हमले – की कड़ी निंदा की थी. इससे साफ संकेत गया कि अब सऊदी अरब अपनी विदेश नीति में बदलाव कर रहा है. पहले पाकिस्तान को सऊदी अरब से आर्थिक सहायता और राजनीतिक समर्थन मिलता रहा. लेकिन अब जब सऊदी अरब भारत में अरबों डॉलर निवेश कर रहा है, तो वह पाकिस्तान की झोली में पैसा डालने से पहले दस बार सोचेगा. इससे भारत की कूटनीतिक ताकत तो बढ़ेगी ही, पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय स्थिति भी कमजोर होगी.
वैसे आपको बता दें कि इस डील का सबसे बड़ा फायदा है भारत की ऊर्जा सुरक्षा. तेल की आपूर्ति जब अपने नियंत्रण में हो, और दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियाँ भारत में निवेश कर रही हों, तो वैश्विक संकटों के समय भारत को स्थायित्व मिलेगा. इसके अलावा यह सौदा रोजगार, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, और तकनीकी साझेदारी के नए रास्ते खोलेगा. और हाँ, इससे भारत को यह दिखाने का मौका भी मिलेगा कि वह अब केवल बाजार नहीं, बल्कि वैश्विक रणनीतिक साझेदार भी है.
भारत और सऊदी अरब की यह डील एक साधारण तेल समझौता नहीं है. यह एक नई शुरुआत है एक ऐसा रिश्ता जो अर्थव्यवस्था, राजनीति और ऊर्जा सुरक्षा को नई दिशा देगा. भारत को जहाँ इससे मजबूती मिलेगी, वहीं पाकिस्तान के लिए यह एक और कड़वा सबक होगा कि दुनिया अब धीरे-धीरे उसका साथ छोड़ रही है. जब सऊदी अरब जैसा देश भारत को अपने तेल का भविष्य मानता है, तो यह केवल कूटनीति नहीं, एक वैश्विक मान्यता है कि भारत अब उभरती नहीं, बल्कि उभर चुकी महाशक्ति है.
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