क्या है Doomsday Clock, क्या सच में Doomsday Clock दुनिया के अंत की भविष्यवाणी करती है?
डूम्सडे क्लॉक (Doomsday Clock) कोई साधारण घड़ी नहीं है, बल्कि यह दर्शाती है कि इंसान खुद को विनाश के कितना करीब ले आया है। 2025 में, यह घड़ी सिर्फ 89 सेकंड दूर रह गई है, जो अब तक की सबसे खतरनाक स्थिति है। वैज्ञानिकों ने इसे 1 सेकंड आगे बढ़ा दिया, जिसका मतलब है कि दुनिया पर खतरा और बढ़ गया है।

1 सेकेंड… बस 1 सेकेंड! सुनने में यह मामूली बदलाव लग सकता है, लेकिन जब यह बदलाव डूम्सडे क्लॉक में होता है, तो पूरी दुनिया की चिंता बढ़ जाती है। यह कोई साधारण घड़ी नहीं है, बल्कि इंसान के खुद के बनाए खतरों का प्रतिबिंब है। यह घड़ी यह नहीं बताती कि अभी कितने बज रहे हैं, बल्कि यह बताती है कि हम विनाश के कितने करीब हैं।डूम्सडे क्लॉक क्या यह सच में दुनिया के अंत का संकेत देती है? और इस बार वैज्ञानिकों ने इसे 1 सेकेंड आगे क्यों बढ़ा दिया? आइए जानते हैं इस रहस्यमयी घड़ी की पूरी कहानी...
क्या है डूम्सडे क्लॉक?
डूम्सडे क्लॉक (Doomsday Clock) एक प्रतीकात्मक घड़ी है, जिसे 1947 में वैज्ञानिकों के एक समूह बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट्स (Bulletin of Atomic Scientists - BAS) ने बनाया था। इसका उद्देश्य था यह दिखाना कि मानव सभ्यता खुद के कारण कितनी तेजी से विनाश की ओर बढ़ रही है। इस घड़ी में आधी रात (Midnight) को दुनिया के अंत का प्रतीक माना जाता है। अगर यह घड़ी 12 बजे पहुंच गई, तो इसका मतलब होगा कि मानव सभ्यता खत्म हो चुकी है। वैज्ञानिक इस घड़ी की सुइयों को घटाते या बढ़ाते हैं, इस आधार पर कि दुनिया में कितने बड़े खतरे मंडरा रहे हैं।
अब सवाल यह है कि आखिर यह घड़ी बनी कैसे? तो हम आपको बता दें कि यह घड़ी ऐसे ही नहीं बनी। इसके पीछे का इतिहास बहुत डरावना है। 1945 में अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए। लाखों लोग एक पल में राख हो गए। इन भयानक हमलों के बाद वैज्ञानिकों को एहसास हुआ कि अगर दुनिया में परमाणु युद्ध हुआ, तो कोई भी इंसान नहीं बचेगा।
इसी के चलते 1947 में वैज्ञानिकों ने एक घड़ी बनाई, जो यह दिखा सके कि हम विनाश से कितनी दूर हैं। जब यह घड़ी पहली बार बनी, तो इसे आधी रात से 7 मिनट पीछे सेट किया गया था। यानी वैज्ञानिकों का मानना था कि दुनिया खतरे में तो है, लेकिन तबाही से थोड़ा दूर भी है। पर समय के साथ यह घड़ी और करीब आती गई… और अब यह महज 89 सेकेंड दूर रह गई है!
डूम्सडे क्लॉक को हर साल वैज्ञानिकों द्वारा रीसेट किया जाता है। कई बार इसे पीछे किया गया, तो कई बार आगे। लेकिन पिछले कुछ दशकों में यह लगातार आगे ही बढ़ रही है, यानी खतरा बढ़ता जा रहा है। 1953 में जब अमेरिका और सोवियत संघ (आज का रूस) ने हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया, तो घड़ी 2 मिनट पर आ गई थी। 1991 में जब शीत युद्ध (Cold War) खत्म हुआ, तो यह 17 मिनट पीछे कर दी गई थी। पर उसके बाद से हालात बिगड़ते ही चले गए। 2020, 2021 और 2022 में यह 100 सेकेंड पर आ गई। जबकि 2023 और 2024 में यह 90 सेकेंड पर पहुंच गई। और अब 2025 में यह सिर्फ 89 सेकेंड दूर है! जो अब तक की सबसे खतरनाक स्थिति है।
क्यों किया गया 1 सेकेंड का बदलाव?
वैज्ञानिकों ने इस बार केवल 1 सेकेंड की कमी की है, लेकिन इसका मतलब बहुत बड़ा है। इसके पीछे कई वजहें हैं
परमाणु युद्ध का खतरा
रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध ने दुनिया को एक नए परमाणु खतरे में डाल दिया है।
रूस बार-बार परमाणु हथियारों की धमकी दे रहा है, जिससे यह खतरा और बढ़ गया है।
मध्य पूर्व का संकट
इज़राइल और फिलिस्तीन (गाजा पट्टी) में चल रही जंग भी दुनिया के लिए एक नया संकट बन चुकी है।
अगर यह युद्ध बढ़ा, तो इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का खतरा
AI (Artificial Intelligence) जहां एक तरफ इंसान की मदद कर रहा है, वहीं इसका गलत इस्तेमाल विनाशकारी साबित हो सकता है। कई देशों की सेनाएं AI का इस्तेमाल कर रही हैं, जिससे यह खतरा और बढ़ गया है।
जलवायु परिवर्तन
ग्लोबल वार्मिंग से धरती पर बर्फ पिघल रही है, महासागर का जलस्तर बढ़ रहा है, और प्राकृतिक आपदाएं लगातार आ रही हैं।
अगर यह इसी तरह चलता रहा, तो धरती पर रहना मुश्किल हो जाएगा।
क्या हम घड़ी को पीछे कर सकते हैं?
अब सवाल उठता है क्या इंसान इस घड़ी को वापस पीछे कर सकता है? इसका जवाब है – हाँ, लेकिन इसके लिए हमें तुरंत कदम उठाने होंगे। परमाणु हथियारों को खत्म करना होगा। युद्ध और टकराव को रोकना होगा। जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एकजुट होकर काम करना होगा। और AI जैसी तकनीकों का सही इस्तेमाल करना होगा। अगर दुनिया के बड़े देश आपस में सहयोग करें, तो हम इस घड़ी को वापस पीछे कर सकते हैं। लेकिन अगर यही हालात रहे, तो यह घड़ी कभी भी आधी रात को छू सकती है और फिर वापस कोई घड़ी नहीं बजेगी!
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