‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ केस क्या है? कोलकाता की डॉक्टर को क्यों नहीं मिला न्याय?
कोलकाता में एक दिल दहला देने वाले मामले में, एक ट्रेनी महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना सामने आई। दोषी संजय रॉय को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई, जबकि पीड़िता के परिवार सहित पूरे देश को उम्मीद थी कि उसे फांसी की सजा मिलेगी। कोर्ट ने इस केस को ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ की श्रेणी में मानने से इनकार कर दिया।

पिछले कुछ महीनों में, पश्चिम बंगाल के कोलकाता में एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक 31 वर्षीय ट्रेनी महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना ने समाज की संवेदनाओं को गहरा आघात पहुंचाया। इस जघन्य अपराध के दोषी सिविक वॉलंटियर संजय रॉय को सियालदह कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। इस फैसले के बाद कई लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि इतनी क्रूर घटना के बावजूद संजय रॉय को मौत की सजा क्यों नहीं दी गई? इसका उत्तर 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' सिद्धांत में निहित है।
क्या है 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' सिद्धांत?
भारतीय न्याय प्रणाली में 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' (विरले में भी विरलतम) सिद्धांत का उल्लेख पहली बार 1980 में सुप्रीम कोर्ट के 'बच्चन सिंह बनाम पंजाब राज्य' मामले में किया गया था। इस सिद्धांत के अनुसार, मौत की सजा केवल उन मामलों में दी जानी चाहिए जो अत्यंत घृणित, क्रूर और असाधारण हों, और जो समाज की सामूहिक अंतरात्मा को झकझोर दें। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मौत की सजा केवल अत्यंत विशेष परिस्थितियों में ही दी जाए, जहां अन्य कोई सजा उपयुक्त न हो।
सियालदह कोर्ट के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश अनिर्बान दास ने अपने 172 पृष्ठों के आदेश में स्पष्ट किया कि संजय रॉय द्वारा किया गया अपराध अत्यंत गंभीर और निंदनीय है, लेकिन यह 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' की श्रेणी में नहीं आता। न्यायाधीश ने यह भी उल्लेख किया कि मामले में प्रत्यक्षदर्शी गवाहों की कमी और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर दोषसिद्धि हुई है। इसलिए, उन्होंने मौत की सजा देने से इनकार करते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई।
किन मामलों को माना जाता है 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर'?
सुप्रीम कोर्ट ने साल 1983 में हुए पंजाब के 'मच्छी सिंह केस' पर ध्यान केंद्रित करते हुए उसे 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' केस का सिद्धांत बताया। न्यायालय ने निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार करने का निर्देश दिया। जिसमें देखा जाता है कि क्या अपराध अत्यंत क्रूर, अमानवीय और बर्बर तरीके से किया गया है? क्या अपराध का उद्देश्य घृणित, स्वार्थी या विकृत मानसिकता का परिणाम है? क्या अपराध समाज के लिए अत्यंत खतरनाक है और क्या इससे समाज की सामूहिक अंतरात्मा को गहरा आघात पहुंचा है? क्या अपराधी में सुधार की संभावना है या वह समाज के लिए स्थायी खतरा है? इन सभी कारकों का समग्र मूल्यांकन करने के बाद ही किसी मामले को 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' की श्रेणी में रखा जाता है और मौत की सजा दी जाती है।
संजय रॉय मामले में न्यायालय का दृष्टिकोण
संजय रॉय के मामले में, न्यायालय ने माना कि अपराध गंभीर है, लेकिन परिस्थितिजन्य साक्ष्यों और प्रत्यक्षदर्शियों की अनुपस्थिति के कारण इसे 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' नहीं माना जा सकता। इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी देखा कि संजय रॉय का कोई पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था, जो सजा निर्धारण में एक महत्वपूर्ण कारक हो सकता है।
इस फैसले के बाद, पीड़िता के परिवार और समाज के विभिन्न वर्गों में आक्रोश है। कई लोग इस सजा को अपर्याप्त मानते हैं और उच्च न्यायालय में अपील की संभावना पर विचार कर रहे हैं। यह मामला एक बार फिर से हमारे न्याय प्रणाली में 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' सिद्धांत की प्रासंगिकता और इसके अनुप्रयोग पर बहस को जन्म देता है।
कोलकाता की इस दुखद घटना ने हमें यह सोचने पर मजबूर किया है कि न्यायिक प्रणाली में सजा निर्धारण के मानदंड क्या होने चाहिए। 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' सिद्धांत का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मौत की सजा केवल अत्यंत विशेष परिस्थितियों में ही दी जाए, लेकिन इसके अनुप्रयोग में पारदर्शिता और सुसंगतता आवश्यक है। समाज की अपेक्षाओं और न्यायिक विवेक के बीच संतुलन बनाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिसे न्यायपालिका को संवेदनशीलता और निष्पक्षता के साथ निभाना होगा।
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