जाने-माने वकील पीयूष सचदेवा लड़ेंगे 26/11 आतंकी तहव्वुर राणा का केस, क्यों मचा बवाल?
26/11 मुंबई आतंकी हमले के आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा को अमेरिका से प्रत्यर्पित कर भारत लाया गया है। सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी में उसे कोर्ट में पेश किया गया, जहां उसकी ओर से केस लड़ेंगे दिल्ली के वरिष्ठ एडवोकेट पीयूष सचदेवा।

26 नवंबर 2008, एक ऐसा दिन जिसे भारत कभी नहीं भूल सकता। मुंबई की सड़कों पर गोलियों की गूंज, आतंक की वहशी तस्वीरें और मासूम जिंदगियों का कत्ल। इस आतंकी हमले में 166 लोगों की जान गई और सैकड़ों घायल हुए। इस कांड का एक साजिशकर्ता तहव्वुर हुसैन राणा, 17 साल बाद भारत लाया गया है। लेकिन अब सवाल ये उठता है इस आरोपी का पक्ष कोर्ट में कौन रखेगा? और जैसे ही ये सवाल उठा, एक नाम सामने आया एडवोकेट पीयूष सचदेवा।
तहव्वुर राणा की अमेरिका से भारत तक की उड़ान
10 अप्रैल 2025 को भारत ने एक बड़ा कूटनीतिक और न्यायिक कदम उठाया। अमेरिका से भारत प्रत्यर्पित कर तहव्वुर राणा को दिल्ली लाया गया। उसे पालम एयरपोर्ट पर विशेष सुरक्षा में उतारा गया, जहाँ NIA की टीम पहले से मौजूद थी। एयरपोर्ट पर ही उसे औपचारिक रूप से गिरफ्तार किया गया। भारत की सुरक्षा एजेंसियों और विदेश मंत्रालय की कोशिशों के बाद अमेरिका ने यह फैसला लिया कि तहव्वुर राणा को उसके अपराधों के लिए भारत की अदालतों में पेश किया जाएगा।
वह कोई आम आरोपी नहीं है। तहव्वुर राणा वही व्यक्ति है जो पाकिस्तानी मूल के कनाडाई नागरिक और 26/11 हमलों के मास्टरमाइंड डेविड कोलमैन हेडली का करीबी रहा है। अमेरिका में उसे पहले ही आतंकी साजिशों के लिए दोषी ठहराया गया है। लेकिन भारत चाहता है कि उसके द्वारा रचे गए भारत विरोधी षड्यंत्रों का हिसाब भारतीय धरती पर हो।
अब कोर्ट में कौन रखेगा उसका पक्ष?
भारत में कानून की सबसे बड़ी खूबी है न्याय सबके लिए समान। चाहे वो निर्दोष हो या अपराधी। इसी सिद्धांत के तहत तहव्वुर राणा को भी एक कानूनी प्रतिनिधि दिया गया है एडवोकेट पीयूष सचदेवा। दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में विशेष NIA जज चंद्रजीत सिंह की अदालत में तहव्वुर राणा को पेश किया जाएगा। वहाँ सरकार की ओर से वरिष्ठ अभियोजक नरेंद्र मान आतंकवाद के इस आरोपी को सजा दिलवाने की कोशिश करेंगे, वहीं राणा के बचाव में खड़े होंगे पीयूष सचदेवा।
आखिर कौन हैं एडवोकेट पीयूष सचदेवा?
इस सवाल का जवाब जितना जरूरी है, उतना ही रोचक भी। पीयूष सचदेवा कोई नए वकील नहीं हैं। वो दिल्ली के अनुभवी और वरिष्ठ एडवोकेट माने जाते हैं। वह दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) से जुड़े हुए हैं, जहाँ वह ऐसे लोगों को कानूनी मदद देते हैं जिन्हें अपनी बात रखने के लिए सक्षम वकील नहीं मिल पाता। पीयूष सचदेवा का नाम सुनते ही सोशल मीडिया पर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया। लोगों ने सवाल उठाए “क्या एक आतंकवादी का बचाव करना सही है?” लेकिन यह समझना ज़रूरी है कि भारतीय संविधान हर व्यक्ति को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार देता है। और पीयूष सचदेवा उसी संवैधानिक जिम्मेदारी को निभा रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने कई जटिल और संवेदनशील केसों में सफलता पाई है। अदालत में उनका तर्क रखने का अंदाज़, केस की गहराई को समझने की क्षमता और कानून की धाराओं पर पकड़ उन्हें एक अलग मुकाम पर ले जाती है।
न्याय की कसौटी पर संविधान
जब भी देश में कोई बड़ा आतंकी या क्रिमिनल पकड़ा जाता है, तो भावनाएं गरमा जाती हैं। लोग चाहते हैं कि उसे बिना देर किए सजा मिले। लेकिन भारत की न्याय प्रणाली भावनाओं पर नहीं, तथ्यों और कानून पर चलती है। पीयूष सचदेवा का केस लेना न तो आतंक को समर्थन है, न ही उनके विचारों से सहमति। ये सिर्फ और सिर्फ भारतीय लोकतंत्र और संवैधानिक सिद्धांतों की जीत है जहाँ न्याय को संतुलित और निष्पक्ष बनाया जाता है।
दूसरी ओर सरकार की तैयारी
भारत सरकार की ओर से इस केस को सबसे अनुभवी अभियोजक नरेंद्र मान संभाल रहे हैं। नरेंद्र मान को आतंकवाद से जुड़े मामलों में लंबा अनुभव है। उन्होंने कई हाई-प्रोफाइल मामलों में सख्त दलीलें दी हैं और दोषियों को सजा दिलाई है। ऐसे में तहव्वुर राणा का केस एक तरह से दो मजबूत कानूनी व्यक्तित्वों के आमने-सामने आने जैसा होगा। एक तरफ नरेंद्र मान जो देश के खिलाफ हुई साजिश का हिसाब मांगेंगे, दूसरी ओर पीयूष सचदेवा जो न्याय की प्रक्रिया को संतुलित करने का प्रयास करेंगे।
अभी तहव्वुर राणा की रिमांड और पूछताछ का दौर चलेगा। NIA उसकी संलिप्तता की तह तक जाएगी। जांच में उसके पाकिस्तान कनेक्शन, हेडली के साथ उसकी बातचीत और 26/11 की साजिश में उसकी भूमिका को खंगाला जाएगा। इस केस में अदालत के हर दिन की कार्यवाही सिर्फ एक कानूनी मुद्दा नहीं होगी बल्कि यह देश की सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय संबंधों और मानवाधिकारों के बीच संतुलन का उदाहरण बनेगी। तहव्वुर राणा का भारत आना और इस मुकदमे की शुरुआत अपने आप में इतिहास बन चुका है। एडवोकेट पीयूष सचदेवा जैसे नाम इस कहानी को और भी रोचक बनाते हैं।
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