Waqf Amendment Bill : लोकसभा में बोले किरेन रिजिजू ,कहा -" बिल नहीं लाते तो संसद भी वक्फ की संपत्ति होती"
Waqf Amendment Bill : लोकसभा में बोले किरेन रिजिजू ,कहा -" बिल नहीं लाते तो संसद भी वक्फ की संपत्ति होती"

केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने बुधवार को लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पेश किया।
विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए किरेन रिजिजू ने कहा, "ऑनलाइन, ज्ञापन, अनुरोध और सुझाव के रूप में कुल 97,27,772 याचिकाएं प्राप्त हुई हैं। 284 डेलिगेशन ने कमेटी के सामने अपनी बात रखी और सुझाव दिए। सरकार ने उन सभी पर ध्यानपूर्वक विचार किया है, चाहे वे जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) के माध्यम से हों या सीधे दिए गए ज्ञापन। इतिहास में पहले कभी किसी विधेयक को इतनी बड़ी संख्या में याचिकाएं नहीं मिली हैं। कई लीगल एक्सपर्ट, कम्युनिटी लीडर्स, धार्मिक लीडर्स और अन्य लोगों ने कमेटी के सामने अपने सुझाव रखे। पिछली बार जब हमने बिल पेश किया था, तब भी कई बातें बताई थी। मुझे उम्मीद ही नहीं, यकीन है कि जो इसका विरोध कर रहे थे, उनके हृदय में बदलाव होगा और वे बिल का समर्थन करेंगे। मैं मन की बात कहना चाहता हूं, किसी की बात को कोई बदगुमां न समझे कि जमीं का दर्द कभी आसमां न समझे।"
#WATCH | After introducing the Waqf Amendment Bill in Lok Sabha, Parliamentary Affairs Minister Kiren Rijiju says "A case ongoing since 1970 in Delhi involved several properties, including the CGO Complex and the Parliament building. The Delhi Waqf Board had claimed these as Waqf… pic.twitter.com/qVXtDo2gK7
— ANI (@ANI) April 2, 2025
किरेन रिजिजू ने आगे कहा, "साल 2013 में यूपीए सरकार ने वक्फ बोर्ड को ऐसा अधिकार दिया कि वक्फ बोर्ड के आदेश को किसी सिविल अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। अगर यूपीए सरकार सत्ता में होती तो संसद इमारत, एयरपोर्ट समेत पता नहीं कितनी इमारतों को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया जाता। साल 2013 में मुझे इस बात पर बहुत आश्चर्य हुआ कि इसे कैसे जबरन पारित किया गया। 2013 में वक्फ अधिनियम में प्रावधान जोड़े जाने के बाद, दिल्ली में 1977 से एक मामला चल रहा था, जिसमें सीजीओ कॉम्प्लेक्स और संसद भवन सहित कई संपत्तियां शामिल थीं। दिल्ली वक्फ बोर्ड ने इन पर वक्फ संपत्ति होने का दावा किया था। मामला अदालत में था, लेकिन उस समय यूपीए सरकार ने सारी जमीन को डीनोटिफाई करके वक्फ बोर्ड को सौंप दिया। अगर हमने आज यह संशोधन पेश नहीं किया होता, तो हम जिस संसद भवन में बैठे हैं, उस पर भी वक्फ संपत्ति होने का दावा किया जा सकता था।"
उन्होंने कहा, "किसी ने कहा कि ये प्रावधान गैर संवैधानिक हैं। किसी ने कहा कि गैर-कानूनी हैं। यह नया विषय नहीं है। आजादी से पहले पहली बार बिल पास किया गया था। इससे पहले वक्फ को इनवैलिडेट (अवैध करार) किया गया था। 1923 में मुसलमान वक्फ एक्ट लाया गया था। ट्रांसपेरेंसी और अकाउंटेबिलिटी का आधार देते हुए एक्ट पारित किया गया था।"
उन्होंने कहा, "1995 में पहली बार वक्फ ट्रिब्यूनल का प्रावधान किया गया था। इससे वक्फ बोर्ड द्वारा लिए गए किसी भी फैसले से असंतुष्ट व्यक्ति वक्फ ट्रिब्यूनल में उसे चुनौती दे सकता था। यह पहली बार था जब ऐसी व्यवस्था स्थापित की गई थी। उस समय यह भी तय किया गया था कि अगर किसी वक्फ संपत्ति से 5 लाख रुपए से ज्यादा की आय होती है, तो सरकार उसकी निगरानी के लिए एक कार्यकारी अधिकारी नियुक्त करेगी। यह व्यवस्था भी 1995 में ही शुरू की गई थी। आज यह मुद्दा इतना तूल क्यों पकड़ रहा है?"
विधेयक को सदन में पेश करते ही विपक्षी दलों ने विरोध शुरू कर दिया। कांग्रेस ने विधेयक के खिलाफ अपनी आपत्ति जताते हुए आरोप लगाया कि उन्हें विधेयक की प्रति देर से प्राप्त हुई, जिसके कारण उन्हें समीक्षा के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला।
कांग्रेस के नेताओं ने चर्चा के दौरान कहा कि सरकार ने इस महत्वपूर्ण विधेयक को जल्दबाजी में पेश किया है और विपक्ष को इस पर चर्चा के लिए उचित अवसर नहीं दिया गया। विधेयक पेश होने के बाद सदन में हंगामे की स्थिति देखी गई, क्योंकि विपक्षी सांसदों ने अपनी नाराजगी जाहिर की।
लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने कांग्रेस पार्टी की ओर से चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि जेपीसी ने आवश्यक विचार-विमर्श नहीं किया। शुरू से ही सरकार का इरादा एक ऐसा कानून पेश करने का रहा है जो असंवैधानिक, अल्पसंख्यक विरोधी और राष्ट्रीय सद्भाव को बाधित करने वाला है।
Input: IANS
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