उत्तराखंड बना यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने वाला पहला राज्य, जानें क्या बदलेगा अब?
उत्तराखंड ने भारत में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code - UCC) लागू करके इतिहास रच दिया है। यह कानून सभी धर्मों और समुदायों के नागरिकों के लिए शादी, तलाक, संपत्ति, उत्तराधिकार, और गोद लेने जैसे मामलों में एक समान कानून सुनिश्चित करेगा।

भारत के संविधान में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code - UCC) को शामिल करने की सिफारिश दशकों पहले की गई थी, लेकिन इसे लागू करने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए उत्तराखंड पहला राज्य बन गया है। यह कदम न केवल राज्य की सामाजिक संरचना में बदलाव लाएगा, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी गूंज सुनाई देगी। आइए इस ऐतिहासिक निर्णय और इसके प्रभावों को विस्तार से समझते हैं।
UCC क्या है और क्यों है यह महत्वपूर्ण?
समान नागरिक संहिता का उद्देश्य सभी नागरिकों को एक समान कानून के तहत लाना है, चाहे उनका धर्म, जाति या लिंग कुछ भी हो। इसमें शादी, तलाक, संपत्ति, उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे मुद्दों पर एक समान नियम बनाए जाते हैं। इससे न केवल सामाजिक न्याय की भावना को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि यह महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सुरक्षित करने का भी काम करेगा।
उत्तराखंड का यह निर्णय न केवल इस दृष्टिकोण से ऐतिहासिक है कि यह राज्य का पहला प्रयास है, बल्कि इसलिए भी कि यह बीजेपी सरकार के प्रमुख चुनावी वादों में से एक था।
कानून के प्रमुख प्रावधान
शादी और तलाक पर समान कानून: अब राज्य में शादी और तलाक के लिए एक समान प्रक्रिया होगी। पुरुषों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष और महिलाओं के लिए 18 वर्ष होगी। यह नियम सभी धर्मों के लिए समान रूप से लागू होगा।
लिव-इन रिलेशनशिप की अनिवार्य रजिस्ट्रेशन: लिव-इन रिलेशनशिप को भी कानूनी मान्यता देने के लिए अनिवार्य रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था की गई है। बिना पंजीकरण के लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों पर तीन महीने की जेल या ₹25,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
उत्तराधिकार के समान अधिकार: बेटा और बेटी दोनों को समान रूप से संपत्ति में उत्तराधिकार का अधिकार मिलेगा।
पॉलिगैमी और ट्रिपल तलाक पर प्रतिबंध: बहुविवाह (पॉलिगैमी) और ट्रिपल तलाक जैसी प्रथाओं पर सख्त प्रतिबंध लगाया गया है।
महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा: विधवा महिलाओं के लिए निकाह हलाला और इद्दत जैसी प्रथाओं को समाप्त किया गया है।
उत्तराखंड सरकार ने UCC के तहत एक ऑनलाइन पोर्टल शुरू किया है, जिसके माध्यम से शादी, तलाक, उत्तराधिकार और लिव-इन रिलेशनशिप जैसी प्रक्रियाओं को डिजिटल माध्यम से निपटाया जा सकेगा। यह पहल नागरिकों के लिए समय और संसाधन बचाने का काम करेगी।
पिछले अनुभव और अन्य राज्यों की प्रतिक्रिया
गोवा भारत का पहला राज्य था, जिसने पुर्तगाली शासन के दौरान समान नागरिक संहिता लागू की थी। गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत का मानना है कि UCC समाज को प्रगतिशील बनाने का महत्वपूर्ण कदम है। उनका कहना है कि देश के युवाओं और शिक्षित वर्ग को इसे खुले दिल से अपनाना चाहिए। उत्तराखंड में इस कानून को लागू करने के बाद अन्य बीजेपी शासित राज्यों में इसे लागू करने की मांग उठने लगी है।
समाज में संभावित बदलाव
यह कानून न केवल धर्म के नाम पर होने वाले भेदभाव को खत्म करेगा, बल्कि महिलाओं और कमजोर वर्गों के अधिकारों को भी मजबूत करेगा। हालांकि, इसका विरोध भी हो रहा है। विपक्षी पार्टियां इसे चुनावी राजनीति का हिस्सा बता रही हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि यह कदम अल्पसंख्यक समुदायों की परंपराओं को चोट पहुंचा सकता है। वहीं, बीजेपी ने इसे समाज को एकजुट करने वाला और न्यायप्रिय कदम बताया है।
UCC के राष्ट्रीय राजनीति में प्रभाव
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले यह मुद्दा बीजेपी के प्रमुख एजेंडे में शामिल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने इसे भारत को संगठित और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम बताया है।
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करना एक साहसिक कदम है। यह राज्य के नागरिकों के लिए समानता और न्याय सुनिश्चित करेगा और राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण उदाहरण पेश करेगा। हालांकि, इसे लागू करने में आने वाली चुनौतियां भी कम नहीं हैं, लेकिन इसके प्रभावों का आकलन आने वाले समय में किया जाएगा। क्या अन्य राज्य भी इस रास्ते पर चलेंगे? यह देखना दिलचस्प होगा।
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