मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू, जाने अब कैसे चलेगी सरकार और क्या होगा असर?
पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में सियासी हलचल अपने चरम पर पहुंच चुकी है। मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे के चार दिन बाद राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया है। गृह मंत्रालय ने इस फैसले की अधिसूचना जारी कर दी है, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने की घोषणा की गई।

मणिपुर में लंबे समय से जारी हिंसा, जातीय संघर्ष और प्रशासनिक अस्थिरता के चलते आखिरकार राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। यह फैसला तब आया जब मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद भी सरकार स्थिर नहीं हो सकी। राज्य में कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति और सरकार की नाकामी के कारण केंद्र को यह कड़ा फैसला लेना पड़ा। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि राष्ट्रपति शासन के बाद मणिपुर की सरकार कैसे चलेगी? क्या-क्या बदलाव होंगे और आम जनता पर इसका क्या असर पड़ेगा?
राष्ट्रपति शासन लगने के पीछे की बड़ी वजहें
मणिपुर पिछले कई महीनों से हिंसा की चपेट में था। राज्य में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय संघर्ष लगातार जारी था, जिसे रोकने में सरकार पूरी तरह विफल रही। स्थिति इतनी गंभीर हो गई थी कि कई जिलों में कर्फ्यू लगाना पड़ा और इंटरनेट सेवाएं बंद करनी पड़ीं। मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की सरकार पर यह आरोप लग रहे थे कि वे सिर्फ एक समुदाय के हित में काम कर रहे हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ गई। विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी कर ली थी, लेकिन इससे पहले ही बीजेपी सरकार नेतृत्व संकट में घिर गई। पार्टी नए मुख्यमंत्री का चयन नहीं कर पाई, जिससे राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ गई। राज्यपाल अंजू पाण्डे ने राज्य की स्थिति को देखते हुए केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की अपील की। इसके बाद केंद्र ने हालात की समीक्षा की और राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला किया।
राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद प्रशासनिक व्यवस्था
जब किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है, तो वहां की पूरी प्रशासनिक जिम्मेदारी केंद्र सरकार के हाथ में आ जाती है। मणिपुर में अब राज्यपाल अजय कुमार भल्ला प्रशासन की कमान संभालेंगे और वे सीधे केंद्र सरकार के निर्देशों के अनुसार काम करेंगे। राष्ट्रपति शासन के दौरान कुछ बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
राज्यपाल का बढ़ता प्रभाव: राज्य में अब मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल नहीं होंगे। राज्यपाल ही सरकार का प्रमुख चेहरा होंगे और वे केंद्र के निर्देशों के अनुसार निर्णय लेंगे।
कानून-व्यवस्था की सख्ती: केंद्र सरकार राज्य में शांति बहाल करने के लिए सेना और अर्धसैनिक बलों की तैनाती बढ़ा सकती है। अशांत इलाकों में सख्त कर्फ्यू और इंटरनेट बंदी जारी रह सकती है।
विधानसभा निलंबित: राष्ट्रपति शासन लागू होते ही राज्य की विधानसभा भंग या निलंबित हो जाती है। इसका मतलब है कि अब कोई नया विधेयक पास नहीं होगा और सभी नीतिगत फैसले केंद्र सरकार की अनुमति से लिए जाएंगे।
वित्तीय नियंत्रण: राज्य के वित्तीय मामलों की पूरी जिम्मेदारी अब केंद्र सरकार के पास होगी। कोई भी नया बजट या आर्थिक योजना केंद्र की अनुमति के बिना लागू नहीं की जा सकेगी।
चुनाव की तैयारी: राष्ट्रपति शासन आमतौर पर 6 महीने के लिए लगाया जाता है, लेकिन जरूरत पड़ने पर इसे बढ़ाया भी जा सकता है। इस दौरान नए चुनाव कराने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है ताकि एक स्थिर सरकार बनाई जा सके।
मणिपुर की जनता पर असर
राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद आम जनता को कई बदलावों का सामना करना पड़ेगा। सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में देरी हो सकती है क्योंकि अब हर योजना को लागू करने के लिए केंद्र की अनुमति लेनी होगी। राज्य में विकास कार्य धीमे हो सकते हैं, लेकिन सुरक्षा व्यवस्था मजबूत होने की उम्मीद है। राजनीतिक अस्थिरता के कारण आम लोग पहले ही परेशान थे, अब वे इस बात को लेकर चिंतित हैं कि अगली सरकार कब बनेगी और क्या हालात सुधरेंगे या नहीं। वहीं, जातीय हिंसा से प्रभावित लोग यह देखना चाहेंगे कि केंद्र सरकार शांति बहाल करने के लिए क्या ठोस कदम उठाती है।
राष्ट्रपति शासन के बाद अब दो संभावनाएं हैं—या तो केंद्र सरकार जल्द ही चुनाव कराकर नई सरकार का गठन करेगी या फिर राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ा दी जाएगी। यह मणिपुर की स्थिति पर निर्भर करेगा कि राज्य में हालात कब तक सामान्य होते हैं और चुनाव कराना कितना संभव है। फिलहाल, मणिपुर में अस्थिरता का दौर जारी है और राज्य की जनता को एक स्थिर, निष्पक्ष और मजबूत सरकार की जरूरत है। राष्ट्रपति शासन इस दिशा में कितना कारगर साबित होगा, यह आने वाले महीनों में साफ हो पाएगा।
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