कभी घुसपैठियों के खिलाफ ममता ने अकेले लड़ी लड़ाई, स्पीकर के सामने फेंका था कागज !
साल था 2005, बंगाल में सरकार हुआ करती थी CPIM की, मुख्यमंत्री थे बुद्धदेव भट्टाचार्य, इस दौर में बांग्लादेशी घुसपैठों की संख्या बंगाल में तेज़ी से बढ़ रही थी, ममता बनर्जी नहीं चाहती थी कि बंगाल में घुसपैठिए आएं, इसीलिए उन्होंने सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया, तब ममता सांसद हुआ करती थी, NDA की सहयोगी थी, ऐसे में उन्होंने बंगाल में घुसपैठ का मुद्दा उठाया सदन में उठाया, लेकिन बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे पर उन्हें बोलने नहीं दिया गया, तब ममता ने लोकसभा में जो किया उसे देखकर सब दंग रह गए थे

वक़्फ़ क़ानून के विरोध में पश्चिम बंगाल जल रहा है, मुर्शिदाबाद के साथ-साथ तमाम जिले हिंसा की चपेट में हैं, मुसलमानों के आतंक से हिंदुओं का पलायन भी हो रहा है, ऐसे में ममता सरकार से सवाल हो रहे हैं कि, आख़िर बार-बार बंगाल में ये स्थिति क्यों बन रही है, बीजेपी ने तो वक़्फ़ क़ानून के विरोध में हो रहे दंगों पर सीधे ममता सरकार को ज़िम्मेदार ठहरा दिया, वहीं TMC इसे घुसपैठियों की साज़िश और केंद्र सरकार और BSF का फेलेवर बता रही है. लेकिन बात केवल आरोप-प्रत्यारोप की नहीं, TMC की बातों को अगर मान लिया जाए तो बात ये है कि, आख़िर घुसपैठिए इतने ताकतवर हो कैसे गए जो आज बांग्लादेश से आकर वो ऐसा करने की जुर्रत कर रहें हैं और ममता बनर्जी पहले की तरह ही अब भी दोष किसी दूसरे को ही दे रही है, आज जो हालात बंगाल के हैं, ऐसा लगता है ये वो वाला दौर आ गया है, जब सत्ता में वामदल हुआ करते थे और ममता उनके ख़िलाफ़ सड़क से लेकर सदन तक लड़ाई लड़ रही थी और जब उनकी बात नहीं सुनी जा रही थी तब वो झल्लाती, रोती और सदन के अंदर हंगामा करती दिखती थी, तो आज आपको वो ममता बनर्जी यही बात बताते हैं कि, कैसे वो वामदलों से लड़कर बंगाल की सत्ता के शिखर तक पहुंची और जब-उनकी बात नहीं सुनी गई तो कैसे उन्होंने बवाल काटा था.
साल था 2005, बंगाल में सरकार हुआ करती थी CPIM की, मुख्यमंत्री थे बुद्धदेव भट्टाचार्य, इस दौर में बांग्लादेशी घुसपैठों की संख्या बंगाल में तेज़ी से बढ़ रही थी, ममता बनर्जी नहीं चाहती थी कि बंगाल में घुसपैठिए आएं, इसीलिए उन्होंने सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया, तब ममता सांसद हुआ करती थी, NDA की सहयोगी थी, ऐसे में उन्होंने बंगाल में घुसपैठ का मुद्दा उठाया सदन में उठाया, लेकिन बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे पर उन्हें बोलने नहीं दिया गया, तब ममता ने लोकसभा में जो किया उसे देखकर सब दंग रह गए थे.
तारीख़ थी, 4 अगस्त 2005, ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे पर स्थगन प्रस्ताव का नोटिस दिया, उस दिन स्पीकर की कुर्सी पर डिप्टी स्पीकर चरणजीत सिंह अटवाल बैठे थे, ममता बनर्जी के नोटिस को खारिज कर दिया गया, डिप्टी स्पीकर अटवाल ने ममता को बैठ जाने के लिए कहा, लेकिन ममता अपनी बातें कहती रहीं, बहस शुरु हुई तो ममता ने हंगामा शुरू कर दिया और अचानक वेल की तरफ बढ़ गईं, फिर घुसपैठ के मुद्दे वाले पेपर्स को स्पीकर की तरफ फेंक दिया और इस्तीफा भी दे दिया. थोड़ा सा. हालांकि उनका इस्तीफ़ा स्वीकार नहीं किया गया सदन में बैठे बाकी सदस्य ममता का ये ग़ुस्सा, ये रवैया देखकर दंग थे, इस दौरान ममता बनर्जी रोतीं हुई भी नज़र आईं, उस वक्त केंद्र में यूपीए की सरकार थी, मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे और ममता बनर्जी एनडीए का हिस्सा हुआ करती थीं, ऐसे में ममता बनर्जी की एक भी बात घुसपैठ के मुद्दे पर नहीं सुनी गई, ऐसे में ये कहा जा सकता है कि यूपीए सरकार ने उस वक़्त ममता की बातें सुनी होती और एक्शन लिया होता तो आज जो स्थिति बंगाल में है शायद हो न होती, उस वक़्त ममता बनर्जी का कहना था, बांग्लादेश के घुसपैठियों को बंगाल की वोटर लिस्ट में शामिल किया गया है, जोकि बहुत बड़ा ख़तरा है.
ये बात 20 साल पहले की है, जब ममता बनर्जी घुसपैठ के मुद्दे पर इतनी मुखर होकर बोलती थी और तब की CPIM सरकार के लिए कहती थी कि उन्होंने बांग्लादेशियों को बंगाल का वोटर बना दिया, और जब ममता की बात उस दौर में नहीं सुनी जाती थी तो ममता हंगामा कर देती थी, रोतीं थी बंगाल की स्थिति पर, लेकिन आज 20 साल बाद भी वही स्थिति है, अबकी कटघरे में ममता बनर्जी है, क्योंकि 2011 से वो बंगाल की सत्ता सँभाल रही है, हालाँकि उस वक़्त वामदलों की सरकार पर घुसपैठ का ठीकरा फोड़ने वाली ममता बनर्जी आज केंद्र सरकार को घुसपैठ के लिए दोष दे रहीं हैं, जिससे समझ आता है कि, अब ममता बनर्जी सिर्फ़ राजनीति करने पर उतारू हैं और बांग्लादेशी घुसपैठिओं का बंगाल में घुसने का सिलसिला जारी है, बाकी इन घुसपैठियों को मदद कौन दे रहा है ये देश देख रहा है.
फ़िलहाल बंगाल के अलग-अलग हिस्सों में भड़की हिंसा के बाद स्थिति को केंद्रीय सुरक्षा बलों ने नियंत्रण में लिया है, हालात सामान्य हो रहें हैं, लेकिन सवाल यही है कि कब तक ये चलता रहेगा, बंगाल शांत कब होगा, घुसपैठियों पल लगाम कब लगेगी.
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