भारत विरोधी रुख अपनाकर मालदीव ज्यादा दिन टिक नहीं सकता – पूर्व राष्ट्रपति नशीद
मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने कहा है कि भारत से अच्छे संबंध मालदीव की सुरक्षा और समृद्धि के लिए बेहद जरूरी हैं। उन्होंने साफ किया कि भारत-विरोधी भावनाएं मालदीव में ज्यादा दिन टिक नहीं सकतीं और जो भी नेता ऐसा करेगा, उसे जल्द ही हकीकत का सामना करना पड़ेगा। मालदीव पर बढ़ते चीन के प्रभाव और कर्ज संकट को लेकर भी नशीद ने चिंता जताई और कहा कि चीन के इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स ने देश को भारी कर्ज में डाल दिया है।

मालदीव और भारत के संबंधों को लेकर एक बार फिर से बड़ी बहस छिड़ गई है। मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने हाल ही में एक इंटरव्यू में बड़ा बयान दिया है कि मालदीव की सुरक्षा और समृद्धि भारत के साथ मजबूत दोस्ती पर निर्भर करती है। उनका कहना है कि भारत विरोधी नेता मालदीव में ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सकते। उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने भारत के साथ संबंधों में खटास ला दी है और चीन के साथ नजदीकियां बढ़ा रहे हैं।
भारत-मालदीव संबंध
भारत और मालदीव के रिश्ते ऐतिहासिक रूप से बेहद मजबूत रहे हैं। मालदीव हिंद महासागर में स्थित एक छोटा लेकिन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देश है। भारत हमेशा से मालदीव का सबसे बड़ा सहयोगी रहा है, चाहे वह सुरक्षा के क्षेत्र में हो, आपदा राहत में हो या आर्थिक मदद में। 1988 में जब पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम (PLOTE) ने मालदीव की सत्ता पर कब्जा करने की कोशिश की थी, तब भारत ने ऑपरेशन कैक्टस के तहत तुरंत सैन्य सहायता भेजकर वहां की सरकार को बचाया था।
हालांकि, हाल के वर्षों में मालदीव में सत्ता परिवर्तन के साथ भारत-विरोधी भावनाओं को उभारने की कोशिश की जा रही है। 2018 में इब्राहिम सोलिह के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत-मालदीव संबंध और मजबूत हुए, लेकिन 2023 में मुइज़ू के सत्ता में आने के बाद हालात बदलने लगे। उन्होंने चीन के साथ रिश्ते मजबूत किए और भारतीय सैनिकों की मौजूदगी को मुद्दा बनाकर भारत के खिलाफ बयानबाजी की।
नशीद का स्पष्ट संदेश
पूर्व राष्ट्रपति नशीद ने साफ तौर पर कहा कि मालदीव की जनता भारत के खिलाफ नहीं है। उन्होंने खुद को खुला भारत समर्थक बताते हुए कहा कि उन्हें राष्ट्रपति इसलिए चुना गया क्योंकि वह भारत के करीब थे और उनकी जनता भी यही चाहती थी। "मालदीव भारत के साथ खराब संबंध बर्दाश्त नहीं कर सकता। जल्दी या बाद में, हर नया नेता यह समझ जाएगा और अपनी नीतियां बदलेगा। भारत विरोधी भावना मालदीव में नहीं टिक सकती।" यह बयान सीधे तौर पर वर्तमान सरकार की नीतियों पर सवाल खड़ा करता है। नशीद का कहना है कि चीन की ओर झुकाव दिखाने के बावजूद, मुइज़ू को जल्द ही भारत की जरूरत महसूस होगी।
चीन का बढ़ता प्रभाव और मालदीव की आर्थिक चिंता
मुइज़ू सरकार चीन के साथ नजदीकियां बढ़ा रही है और कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में चीनी निवेश बढ़ा रही है। हालांकि, नशीद ने इस पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि इससे मालदीव कर्ज के जाल में फंसता जा रहा है। "चीन ने कई प्रोजेक्ट्स में निवेश किया है, लेकिन इसकी वजह से हम भारी कर्ज संकट में आ चुके हैं। हमें अपनी अर्थव्यवस्था को लेकर सतर्क रहना होगा। कोई भी देश अधिक कर्ज पसंद नहीं करता और यह लंबे समय तक सही नहीं ठहराया जा सकता।"
मालदीव के आर्थिक हालात पर चर्चा करते हुए उन्होंने याद किया कि COVID-19 के दौरान कई विदेशी नागरिक मालदीव को वर्क फ्रॉम होम डेस्टिनेशन के रूप में इस्तेमाल करने लगे थे। उस समय मालदीव सरकार ने इसे पर्यटन उद्योग को पुनर्जीवित करने के मौके के रूप में देखा और "सेकंड होम प्रोग्राम" शुरू किया। लेकिन अब, बढ़ते कर्ज और चीन पर बढ़ती निर्भरता से स्थिति बिगड़ती जा रही है।
भारत का महत्व और भविष्य की रणनीति
भारत ने हमेशा मालदीव की हर संभव मदद की है। चाहे वह कोविड-19 वैक्सीन की आपूर्ति हो, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट हो, या आपदा राहत – भारत ने हर कदम पर मालदीव का साथ दिया है। लेकिन अगर मालदीव की वर्तमान सरकार भारत से दूरी बनाती है, तो इसका असर सिर्फ द्विपक्षीय संबंधों पर ही नहीं, बल्कि मालदीव की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा पर भी पड़ेगा। मालदीव की जनता को भी यह समझना होगा कि भारत केवल एक पड़ोसी देश नहीं, बल्कि एक मजबूत सहयोगी है। अगर मालदीव अपनी संप्रभुता और समृद्धि बनाए रखना चाहता है, तो उसे भारत के साथ दोस्ती को प्राथमिकता देनी होगी।
मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने जो बयान दिया है, वह भविष्य की राजनीति की ओर इशारा करता है। मुइज़ू सरकार भले ही अभी भारत के खिलाफ दिख रही हो, लेकिन उन्हें जल्द ही यह समझ में आएगा कि भारत के बिना मालदीव की प्रगति संभव नहीं। अगर मालदीव की सरकार भारत के खिलाफ नीतियां अपनाती रही, तो इसका सीधा असर उनकी अर्थव्यवस्था, पर्यटन और सुरक्षा पर पड़ेगा। वहीं, अगर वे भारत के साथ रिश्ते सुधारते हैं, तो इसका लाभ सिर्फ सरकार को नहीं, बल्कि मालदीव के आम नागरिकों को भी मिलेगा।
आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि मालदीव की सरकार भारत के साथ रिश्तों को प्राथमिकता देती है या चीन के कर्ज के बोझ तले दबती चली जाती है।
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