तमिलनाडु में हिंदी विवाद का पूरा इतिहास जानिए
हिंदी भाषा को लेकर तमिलनाडु में लगातार विवाद चल रहा है, ऐसे में जानिए हिंदी भाषा विवाद के इतिहास के बारे में विस्तार से

क्या है राष्ट्रीय शिक्षा नीति?
इसके तहत तीन भाषाओं की नीति है, तमिल, अंग्रेज़ी और एक कोई दूसरी भारतीय भाषा, हालांकि, इस नीति में कहीं भी ज़ोर देकर ये नहीं कहा गया कि तीसरी भाषा हिंदी ही होनी चाहिए, तीसरी भाषा कोई भी भारतीय भाषा हो सकती है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कहीं भी हिंदी थोपने को लेकर बातें नहीं कहीं गई हैं, इसके बावजूद, तमिलनाडु सरकार इसे एक तरह से हिंदी थोपने की बात कह कर बवाल काट रही है, स्टालिन हिंदी भाषा का मुद्दा उठाकर चुनावी फायदा उठाने की कोशिश में लगे हुए हैं। TVK पार्टी की स्थापना करने के बाद विजय थालापति भी तमिल की लड़ाई लड़कर अपनी पार्टी को स्थापित करने में लगे हैं, वहीं अन्नामलाई इन सबको जवाब देते हुए कह रहे हैं, "तमिल का सम्मान है, हिंदी को थोपने का झूठ फैलाया जा रहा है।"
मुख्यमंत्री स्टालिन हिंदी पर कहते हैं, "अगर केंद्र सरकार हिंदी थोपने की कोशिश करती है, तो हम इसके खिलाफ पूरी तरह तैयार हैं। तमिलनाडु सिर्फ तमिल और अंग्रेजी का पालन करेगा, हिंदी को थोपने की किसी भी कोशिश का विरोध होगा।"
विजय थालापति ने हिंदी पर बोलते हुए कहा, "कोई भी व्यक्ति कोई भी भाषा सीख सकता है, लेकिन सहकारी संघवाद और राज्य की स्वायत्तता का उल्लंघन करना तथा किसी अन्य भाषा को थोपकर और उसे राजनीतिक रूप से लागू करके राज्य की भाषा पर प्रश्नचिह्न लगाना अस्वीकार्य है, हम किसी अन्य भाषा के लिए अपना आत्मसम्मान नहीं छोड़ेंगे।"
ऐसे में बीजेपी के तमिलनाडु अध्यक्ष के अन्नामलाई ने इन सबको जवाब देते हुए कहा, "DMK की भाषा नीति में हिपोक्रेसी है, जहां स्टालिन दावा करते हैं कि वह किसी भाषा का विरोध नहीं करते, वहीं तमिलनाडु के सरकारी स्कूलों के छात्रों को तीसरी भाषा सीखने का मौका नहीं दिया जाता है, जबकि प्राइवेट स्कूलों में यह सुविधा है। किसी ने कोई भाषा थोपने की कोशिश नहीं की, झूठ फैलाया जा रहा है।"
अब जब इतना विवाद अभी हिंदी भाषा को लेकर तमिलनाडु में चल रहा है तो फिर चलिए इस हिंदी भाषा विवाद के इतिहास के बारे में जानते हैं।भारत की आज़ादी के पहले जब तमिलनाडु मद्रास प्रेसीडेंसी हुआ करता था, तो 30 दशक के मध्य में हिंदी भाषा विरोध का आंदोलन शुरू हुआ, ये विरोध आंदोलन तीन साल तक चला।
इसके बाद तो समय समय पर हिंदी का विरोध चलता रहा, आंदोलन होते रहे, लेकिन इन सबके बीच हिंदी को लेकर कई फ़ैसले भी होते रहे, जैसे:
- 1946-1950 के दौर में सरकार ने स्कूलों में फिर से हिंदी लाने की कोशिश की, ऐसे में समझौते के तहत हिंदी को वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल करने का फैसला किया गया।
- 1959 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संसद को भरोसा दिलाया कि गैर हिंदी भाषी राज्य फैसला ले सकते हैं कि अंग्रेजी कब तक उनकी आधिकारिक भाषा रहेगी और हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही देश की प्रशासनिक भाषा बनी रहेंगी।
- 1963 में Official Languages Act पारित हुआ तो डीएमके ने आंदोलन शुरू कर दिया, माहौल खराब हुआ, ऐसे में तीन भाषाओं- अंग्रेजी, तमिल और हिंदी का फॉर्मूला पेश किया।
- 1965 के आंदोलन की तो पूरे देश में चर्चा रही, हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के विरोध में तमिलनाडु में बहुत बड़ा हिंदी विरोधी आंदोलन शुरू हुआ, दंगे भड़क गए, लगभग 70 लोग मारे गए थे।
- 1967 में Official Language Act में संशोधन किया गया, इंदिरा सरकार में 1967 वाले एक्ट में संशोधन के जरिये 1959 के नेहरू के आश्वासन को सुरक्षा दे दी, लेकिन 1967 में मद्रास (तमिलनाडु) में हार के बाद कांग्रेस की सरकार चली गई।
- 1968 में विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें त्रिभाषा नीति को समाप्त कर दिया गया और पाठ्यक्रम से हिंदी को हटा दिया गया, केवल अंग्रेजी और तमिल को अहमियत दी गई, इसका फ़ायदा ये हुआ कि आंदोलन समाप्त हो गए।
- 1986 में भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की, इसमें नवोदय स्कूल स्थापित करने का प्रावधान था। डीएमके ने दावा किया था कि हिंदी पढ़ाना अनिवार्य होगा, नई शिक्षा नीति का विरोध शुरू हो गया, राजीव गांधी ने तमिलनाडु के सांसदों को आश्वासन दिया कि हिंदी नहीं थोपी जाएगी, समझौते के तहत तमिलनाडु में नवोदय विद्यालय शुरू नहीं किए गए, वर्तमान में तमिलनाडु भारत का एकमात्र राज्य है जहां नवोदय स्कूल नहीं हैं।
- 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आ गई, गृह मंत्रालय का आदेश आया, सभी मंत्रालयों, विभागों, निगमों या बैंकों के सरकारी कर्मचारी और अधिकारी, जिन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आधिकारिक खाते बनाए हैं, उन्हें हिंदी, या हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग करना चाहिए, हिंदी को प्राथमिकता देनी चाहिए, इसका तमिलनाडु के सभी राजनीतिक दलों ने विरोध किया।
- 2025 में डीएमके सरकार ने बजट के लिए अपने लोगो में से रुपये के देवनागरी सिंबल '₹' को हटाकर तमिल अक्षर 'ரூ' का इस्तेमाल किया।
यानि आज जो भाषा विवाद तमिलनाडु में हो रहा है, वो कोई नया नहीं है। तमिलनाडु जब मद्रास प्रेसीडेंसी, और मद्रास स्टेट हुआ करता था, तब से ये विवाद चला आ रहा है। देश की आज़ादी के पहले से ही तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलन होते रहे हैं, और उसके पीछे कारण भी है। दरअसल, हिंदी के विरोध में होने वाले आंदोलन के कारण राज्य में बड़े राजनीतिक परिवर्तन हुए, जैसे 1967 के विधानसभा चुनाव में डीएमके ने इसी मुद्दे पर जीत हासिल की, जिसका असर ये हुआ कि कांग्रेस फिर कभी तमिलनाडु में सत्ता हासिल नहीं कर सकी। यही वजह है कि एमके स्टालिन हिंदी भाषा को राज्य पर थोपे जाने को तूल देकर राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश में हैं, वही हाल विजय थालापति का भी है, वह भी तमिल भाषा का मुद्दा उठाकर प्रदेश की राजनीति में ख़ुद को स्थापित करने में लगे हैं।