UCC के खिलाफ जेडीयू के खालिद अनवर का तीखा बयान, धामी सरकार की आलोचना
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लेकर एक बार फिर से राष्ट्रीय स्तर पर बहस छिड़ गई है। सोमवार को धामी सरकार ने राज्य में यूसीसी को लागू कर दिया, जिससे इसे लेकर राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ गई। हालांकि भारतीय जनता पार्टी इसे "समाज सुधार" का ऐतिहासिक कदम बता रही है, लेकिन जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने इस पर कड़ा विरोध जताया है।

उत्तराखंड की धामी सरकार ने सोमवार को राज्य में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करके एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक कदम उठाया। हालांकि, इस फैसले से जहां एक तरफ बीजेपी इसे ऐतिहासिक उपलब्धि बता रही है, वहीं दूसरी ओर जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने इस फैसले की तीखी आलोचना की है। जेडीयू के वरिष्ठ नेता और एमएलसी खालिद अनवर ने इसे जल्दबाजी में लिया गया निर्णय बताते हुए इसे भारतीय समाज की विविधता के खिलाफ बताया।
क्या है समान नागरिक संहिता (यूसीसी)?
समान नागरिक संहिता का मतलब है कि देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या समुदाय के हों। यह कानून विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और संपत्ति के बंटवारे जैसे मामलों में एक समान नियम लागू करने की बात करता है। हालांकि, यह विचार लंबे समय से बहस का मुद्दा रहा है, क्योंकि भारत की विविधता और धार्मिक स्वतंत्रता के चलते इस पर आम सहमति बनाना मुश्किल रहा है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसे "नए युग का कदम" बताया और कहा कि यह समाज में समानता और एकता लाने का माध्यम बनेगा। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड जैसे राज्यों में, जहां बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदाय दोनों की उपस्थिति है, यूसीसी का लागू होना सभी के अधिकारों की रक्षा करेगा। राज्य सरकार ने इसे लागू करने से पहले एक विशेषज्ञ समिति बनाई थी, जिसने इसकी जरूरत और प्रभाव का अध्ययन किया। हालांकि, विरोधियों का कहना है कि इस अध्ययन को जनता के सामने पेश नहीं किया गया, जिससे यह निर्णय पारदर्शिता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता।
जेडीयू का तीखा विरोध
जेडीयू नेता खालिद अनवर ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "हमारी पार्टी का हमेशा यह मानना रहा है कि भारत विविधता का देश है। यहां की संस्कृति, परंपरा और सामाजिक संरचना को बनाए रखना जरूरी है। यूनिफॉर्म सिविल कोड हमारी इस विविधता को खत्म कर देगा।" उन्होंने आगे कहा, "इस तरह के कानून को लागू करने से पहले जनता को जागरूक करना और समाज को इसके लिए तैयार करना बेहद जरूरी है। उत्तराखंड सरकार ने जल्दबाजी में यह कदम उठाया, जिससे समाज में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है।"
बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू के नेता नीतीश कुमार ने पहले ही 'लॉ कमीशन ऑफ इंडिया' को लिखे पत्र में स्पष्ट किया था कि उनकी पार्टी समान नागरिक संहिता के खिलाफ है। उनका मानना है कि यह कानून न केवल सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि इससे धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता भी खतरे में पड़ सकती है। खालिद अनवर ने नीतीश कुमार की विचारधारा को दोहराते हुए कहा, "हमारी पार्टी वंशवाद और परिवारवाद को बढ़ावा देने के खिलाफ है। यह हमारी पार्टी की विचारधारा है कि समाज के हर वर्ग को बराबर मौका मिले।"
राजनीतिक समीकरण और विवाद
धामी सरकार के इस फैसले ने राष्ट्रीय स्तर पर एक नई बहस छेड़ दी है। एनडीए में शामिल जेडीयू का इस पर विरोध करना बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। खासकर 2024 के चुनावों से पहले, जब हर पार्टी अपने-अपने वोट बैंक को मजबूत करने में जुटी हुई है। वहीं, विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे को भुनाने का प्रयास शुरू कर दिया है। कांग्रेस, सपा और अन्य पार्टियों ने इसे सरकार का अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाला कदम बताया।
यूसीसी को लेकर समाज के अलग-अलग हिस्सों में मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोग इसे महिला अधिकारों और लैंगिक समानता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम मानते हैं, तो कुछ इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात बताते हैं।
धार्मिक संगठनों और अल्पसंख्यक समुदायों ने आशंका जताई है कि यह कानून उनकी परंपराओं और रीति-रिवाजों को खतरे में डाल सकता है। दूसरी ओर, इसके समर्थकों का कहना है कि यह कानून देश को एकजुट करेगा और "एक देश, एक कानून" के सिद्धांत को मजबूत करेगा। समान नागरिक संहिता के लागू होने से उत्तराखंड ने एक नई दिशा में कदम बढ़ाया है, लेकिन इस फैसले के दीर्घकालिक प्रभावों का मूल्यांकन अभी बाकी है। क्या यह फैसला समाज में समानता और एकता लाएगा, या फिर यह विवाद और असहमति को बढ़ावा देगा?
यह तय है कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा न केवल उत्तराखंड, बल्कि पूरे देश में एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक बहस का केंद्र बना रहेगा।
Source- आईएएनएस
Source- आईएएनएस
Advertisement