शेख हसीना के प्रत्यर्पण और चिन्मय दास मामले पर बांग्लादेश को भारत का सख्त रुख
भारत और बांग्लादेश के बीच कूटनीतिक संबंधों में एक नई चुनौती उभरकर सामने आई है। बांग्लादेश ने औपचारिक रूप से भारत से पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की है। यह मांग 2013 में हुए प्रत्यर्पण समझौते के तहत की गई है। हालांकि, इस समझौते में एक प्रावधान है कि अगर प्रत्यर्पण का कारण राजनीतिक हो, तो इसे लागू करना अनिवार्य नहीं है।

भारत और बांग्लादेश के कूटनीतिक संबंधों में एक नई जटिलता उभरकर सामने आई है। बांग्लादेश ने भारत को एक औपचारिक नोट भेजकर पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की है। इस मामले ने दोनों देशों के बीच बने भरोसे और समझौतों को एक नई परीक्षा पर ला खड़ा किया है।
पिछले महीने बांग्लादेश सरकार ने भारत को प्रत्यर्पण संधि के तहत शेख हसीना को सौंपने का अनुरोध किया। बांग्लादेश विदेश मंत्रालय ने 2013 की प्रत्यर्पण संधि का हवाला दिया, जिसमें दोनों देशों ने एक-दूसरे के वांछित अपराधियों को सौंपने का समझौता किया था। लेकिन इस मामले में पेच यह है कि यदि किसी व्यक्ति के प्रत्यर्पण का कारण राजनीतिक हो, तो भारत इसके लिए बाध्य नहीं है। शेख हसीना, जो एक समय बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रही हैं, उन पर वर्तमान सरकार ने कई आपराधिक मामले दर्ज किए हैं। विपक्ष का आरोप है कि ये मुकदमे राजनीति से प्रेरित हैं।
भारत के विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की कि बांग्लादेश की तरफ से शेख हसीना के प्रत्यर्पण के लिए औपचारिक अनुरोध मिला है। मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "हम मामले की गहन जांच कर रहे हैं। प्रत्यर्पण के लिए भारतीय कानून और अंतरराष्ट्रीय संधियों के तहत आवश्यक प्रावधानों का पालन किया जाएगा।"
चिन्मय दास मामले में नई हलचल
इस विवाद के बीच, बांग्लादेश में एक और मामला सुर्खियों में है। इस्कॉन के पूर्व नेता और सम्मिलिता सनातनी जागरण जोत के प्रवक्ता चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी को चटगांव की अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया। अभियोजन पक्ष का कहना है कि चिन्मय दास पर राजद्रोह का गंभीर आरोप है, जिसमें अधिकतम उम्रकैद की सजा हो सकती है। हालांकि, उनकी वकीलों की टीम ने अदालत में तर्क दिया कि यह मामला पूरी तरह से निराधार है। उनका कहना है कि झंडे के अपमान का कोई ठोस सबूत नहीं है, और यह आरोप राजनीतिक दबाव के तहत लगाया गया है।सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने कहा कि चिन्मय दास का कृत्य बांग्लादेश की संप्रभुता के खिलाफ है। दूसरी ओर, बचाव पक्ष ने वीडियो सबूतों का हवाला देते हुए बताया कि जिस झंडे के अपमान का आरोप लगाया गया है, वह बांग्लादेश का झंडा था ही नहीं।
दो देशों के बीच बढ़ती कूटनीतिक जटिलता
चिन्मय दास और शेख हसीना के मामलों ने भारत और बांग्लादेश के बीच संबंधों को चुनौती दी है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे कथित अत्याचार और भारत में इनसे जुड़े मामलों ने मानवाधिकार और न्याय प्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। भारत के सामने यह मामला केवल कानूनी नहीं, बल्कि कूटनीतिक भी है। अगर शेख हसीना का प्रत्यर्पण किया जाता है, तो यह बांग्लादेश के साथ संबंधों में एक नया अध्याय जोड़ सकता है। लेकिन यदि इसे ठुकरा दिया गया, तो भारत को राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोपों का सामना करना पड़ सकता है।
शेख हसीना और चिन्मय दास के मामलों ने भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीति में नई हलचल पैदा की है। इन मामलों में भारत का रुख केवल कानूनी नहीं, बल्कि राजनीतिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों देश इस जटिल मुद्दे को किस तरह सुलझाते हैं और अपने संबंधों को नई दिशा देते हैं।
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