WEDNESDAY 30 APRIL 2025
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Holashtak 2025: 7 मार्च से शुरू होलाष्टक, जानें क्यों माने जाते हैं ये 8 दिन अशुभ?

होलाष्टक 2025 इस बार 7 मार्च से 13 मार्च तक रहेगा। यह फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक के 8 दिनों का काल होता है, जिसे हिंदू धर्म में अशुभ माना जाता है। इस दौरान विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नया व्यापार शुरू करना और अन्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं।

Holashtak 2025: 7 मार्च से शुरू होलाष्टक, जानें क्यों माने जाते हैं ये 8 दिन अशुभ?
फाल्गुन मास आते ही पूरे देश में होली की तैयारियां जोरों पर शुरू हो जाती हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि होली से ठीक 8 दिन पहले एक विशेष समय शुरू होता है, जिसे होलाष्टक कहा जाता है? यह समय हिंदू धर्म में बेहद संवेदनशील और अशुभ माना जाता है। होलाष्टक 2025 में 7 मार्च से शुरू होकर 13 मार्च को समाप्त होगा। इस दौरान विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन और अन्य शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं। लेकिन आखिर क्यों? क्या है इसके पीछे का धार्मिक, पौराणिक और वैज्ञानिक कारण? आइए इस लेख में जानते हैं होलाष्टक से जुड़ी हर महत्वपूर्ण जानकारी।

होलाष्टक क्या है?

होलाष्टक शब्द दो शब्दों 'होली' और 'अष्टक' से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है होली से पहले के आठ दिन। यह फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर पूर्णिमा तक चलता है। इस दौरान शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, नया व्यापार शुरू करना, नामकरण आदि पूरी तरह निषेध माने जाते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, यह समय नकारात्मक ऊर्जा और अशुभ शक्तियों के प्रभाव का होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इन आठ दिनों में ग्रहों की स्थिति उग्र होती है, जिससे कोई भी शुभ कार्य फलदायी नहीं होता।

वैसे आपको बता दें कि इस साल होलाष्टक 2025 में 7 मार्च (शुक्रवार) से शुरू होकर 13 मार्च (गुरुवार) तक चलेगा। इसके बाद 13 मार्च की रात होलिका दहन होगा और अगले दिन 14 मार्च को रंगों वाली होली खेली जाएगी।

होलाष्टक का धार्मिक और पौराणिक महत्व

होलाष्टक का सबसे महत्वपूर्ण पौराणिक प्रसंग भक्त प्रह्लाद और उसके पिता असुर राजा हिरण्यकश्यप से जुड़ा है। प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे, लेकिन उनके पिता विष्णु से घृणा करते थे। हिरण्यकश्यप ने होलाष्टक के आठ दिनों में अपने पुत्र को अमानवीय यातनाएं दीं, लेकिन विष्णु भक्ति में लीन प्रह्लाद अडिग रहे। अंत में, 8वें दिन हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को आग में बिठाकर भस्म कर दे। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जल गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गए। यही कारण है कि होलाष्टक के आठ दिन अत्यंत अशुभ माने जाते हैं और किसी भी शुभ कार्य को निषेध किया जाता है।

वही एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान शिव ने इन्हीं आठ दिनों में कामदेव को भस्म किया था। जब माता पार्वती शिवजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप कर रही थीं, तब देवताओं ने कामदेव से अनुरोध किया कि वह शिवजी की तपस्या भंग करें। कामदेव ने प्रेम के बाण चलाए, जिससे शिवजी का ध्यान भंग हुआ और क्रोधित होकर उन्होंने अपनी तीसरी आंख से कामदेव को भस्म कर दिया। इस घटना के कारण भी होलाष्टक के दिनों को अशुभ माना जाता है और विवाह आदि मांगलिक कार्यों पर रोक होती है।

होलाष्टक के दौरान कौन-कौन से ग्रह उग्र रहते हैं?

होलाष्टक की अवधि में आठ दिनों तक अलग-अलग ग्रह उग्र स्थिति में रहते हैं। इन ग्रहों की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव न केवल व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है, बल्कि यह संपूर्ण वातावरण को भी प्रभावित करता है। इस कारण ही इस समय शुभ कार्यों को करने की मनाही होती है। आइए विस्तार से जानते हैं कि होलाष्टक के प्रत्येक दिन कौन सा ग्रह प्रभावी रहता है और उसका मनुष्य के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है।

1. अष्टमी तिथि – सूर्य का प्रभाव
होलाष्टक का पहला दिन अष्टमी तिथि होती है, और इस दिन सूर्य उग्र स्थिति में रहता है। सूर्य आत्मविश्वास, नेतृत्व क्षमता और सम्मान का कारक ग्रह है। जब यह अशांत होता है, तो व्यक्ति के जीवन में अहंकार, गुस्सा और चिड़चिड़ापन बढ़ सकता है। इस दौरान व्यक्ति को आत्मसंयम रखना चाहिए और अहंकार से बचना चाहिए, अन्यथा पारिवारिक और सामाजिक संबंध खराब हो सकते हैं।

2. नवमी तिथि – चंद्रमा का प्रभाव
दूसरे दिन नवमी तिथि को चंद्रमा उग्र रहता है। चंद्रमा मन और भावनाओं का कारक होता है। इसके अशुभ प्रभाव से व्यक्ति मानसिक रूप से कमजोर महसूस कर सकता है, डिप्रेशन, तनाव और अनावश्यक चिंता से ग्रस्त हो सकता है। इस दिन ध्यान, योग और प्राणायाम करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है।

3. दशमी तिथि – मंगल का प्रभाव
होलाष्टक के तीसरे दिन दशमी तिथि को मंगल ग्रह उग्र स्थिति में रहता है। मंगल क्रोध, ऊर्जा और संघर्ष का प्रतीक है। इस दिन गुस्सा बढ़ सकता है, वाद-विवाद की संभावना अधिक रहती है और दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है। इस समय वाणी और व्यवहार में संयम रखना जरूरी होता है। साथ ही, किसी भी प्रकार के शारीरिक झगड़े और विवाद से बचना चाहिए।

4. एकादशी तिथि – बुध का प्रभाव
एकादशी तिथि पर बुध ग्रह का प्रभाव अधिक होता है। बुध बुद्धि, तर्कशक्ति और वाणी का स्वामी ग्रह है। जब यह उग्र होता है, तो व्यक्ति के निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है, संचार में गलतफहमी बढ़ सकती है और व्यापार या नौकरी में अस्थिरता आ सकती है। इस दिन महत्वपूर्ण निर्णय लेने से बचना चाहिए और धैर्य से काम लेना चाहिए।

5. द्वादशी तिथि – गुरु का प्रभाव
पांचवें दिन द्वादशी तिथि पर गुरु ग्रह उग्र रहता है। गुरु ज्ञान, धर्म, आध्यात्मिकता और समृद्धि का कारक ग्रह है। जब यह अशांत होता है, तो व्यक्ति को अपने लक्ष्य प्राप्त करने में कठिनाई होती है, शिक्षा में बाधा आती है और आर्थिक स्थिति कमजोर हो सकती है। इस दिन गुरु से संबंधित उपाय करना, जैसे पीले रंग के वस्त्र धारण करना और विष्णु जी की पूजा करना, शुभ माना जाता है।

6. त्रयोदशी तिथि – शुक्र का प्रभाव
छठे दिन त्रयोदशी तिथि को शुक्र ग्रह प्रभावी होता है। शुक्र भौतिक सुख-सुविधाओं, प्रेम, विवाह और सौंदर्य का ग्रह है। इसके उग्र होने पर वैवाहिक जीवन में तनाव बढ़ सकता है, प्रेम संबंधों में गलतफहमियां हो सकती हैं और भौतिक इच्छाओं की पूर्ति में बाधा आ सकती है। इस दिन सफेद रंग के कपड़े पहनना और मां लक्ष्मी की पूजा करना लाभकारी होता है।

7. चतुर्दशी तिथि – शनि का प्रभाव
सातवें दिन चतुर्दशी तिथि पर शनि ग्रह उग्र रहता है। शनि न्याय, कर्म और अनुशासन का स्वामी है। जब यह क्रोधित होता है, तो व्यक्ति के जीवन में कठिनाइयां, बाधाएं और संघर्ष बढ़ सकते हैं। इस दिन किसी भी प्रकार के नए कार्य की शुरुआत नहीं करनी चाहिए, बल्कि पुराने कार्यों को पूरा करने और धैर्य से आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए। शनि देव की कृपा पाने के लिए इस दिन जरूरतमंदों को दान देना शुभ होता है।

8. पूर्णिमा तिथि – राहु और केतु का प्रभाव
होलाष्टक के अंतिम दिन पूर्णिमा तिथि पर राहु और केतु ग्रहों का प्रभाव सबसे अधिक रहता है। ये दोनों ग्रह भ्रम, भय, मानसिक अशांति और अचानक घटनाओं के कारक माने जाते हैं। इनके प्रभाव से व्यक्ति को अनजाने भय का अनुभव हो सकता है, असमंजस की स्थिति बनी रहती है और जीवन में अचानक बदलाव देखने को मिलते हैं। इस दिन हनुमान जी की पूजा और हनुमान चालीसा का पाठ करने से नकारात्मक ऊर्जा से बचा जा सकता है
इस अवधि में ग्रहों की स्थिति के कारण मन में अशांति, तनाव और मानसिक अस्थिरता बनी रहती है, इसलिए नए कार्य शुरू करने से बचा जाता है।

होलाष्टक में क्या करें और क्या न करें?

इस समय भगवान विष्णु और शिव की आराधना करें। दान-पुण्य, जप-तप और भक्ति करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। होलाष्टक में हनुमान चालीसा का पाठ करने से नकारात्मक ऊर्जा से बचा जा सकता है। गरीबों को भोजन कराना और जरूरतमंदों की मदद करना शुभ माना जाता है।

वही होलाष्टक के दौरान  विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, नया व्यापार शुरू करने से बचें। घर में कोई नया निर्माण कार्य या प्रॉपर्टी खरीदने से बचना चाहिए। महंगी चीजों की खरीदारी, जैसे सोना-चांदी, गाड़ी आदि भी इस दौरान नहीं करनी चाहिए। इस दौरान क्रोध, अहंकार और बुरी आदतों से दूर रहें, क्योंकि इसका नकारात्मक प्रभाव बढ़ सकता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से होलाष्टक क्यों महत्वपूर्ण है?
होलाष्टक के समय मौसम में बदलाव आता है। सर्दी के बाद गर्मी का आगमन होता है, जिससे शरीर और मन पर प्रभाव पड़ता है।
इस समय वातावरण में बैक्टीरिया और वायरस अधिक सक्रिय हो जाते हैं, जिससे बीमारियां फैलने की संभावना रहती है।
इस दौरान मन चंचल और अशांत रहता है, इसलिए कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय लेने से बचना चाहिए।
यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने इस समय ध्यान, पूजा-पाठ और आत्मचिंतन का सुझाव दिया।

होलाष्टक केवल एक धार्मिक परंपरा ही नहीं, बल्कि हमारे जीवन में संतुलन बनाए रखने का एक वैज्ञानिक तरीका भी है। इस दौरान हम अपने मन और आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं। 7 से 13 मार्च 2025 तक होलाष्टक का पालन करके हम खुद को नकारात्मक ऊर्जा से बचा सकते हैं और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

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