राधा-कृष्ण की मूर्ति चोरी के बाद हुआ चमत्कार, चोर ने माफीनामा लिख लौटाई मूर्ति
प्रयागराज के श्रृंग्वेरपुर धाम में स्थित राम जानकी मंदिर से सौ साल पुरानी राधा-कृष्ण की अष्टधातु मूर्ति चोरी हो गई थी, जिससे पूरे क्षेत्र में आक्रोश फैल गया। पुलिस ने जांच शुरू की, लेकिन मूर्ति का कोई सुराग नहीं मिला। आठ दिन बाद, चोर ने अपना हृदय परिवर्तन दिखाते हुए मूर्ति को हंडिया-कोखराज हाईवे के किनारे एक पेड़ के नीचे छोड़ दिया। मूर्ति के साथ एक माफीनामा भी मिला।

प्रयागराज का श्रृंग्वेरपुर धाम जो अपनी धार्मिक और ऐतिहासिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है, हाल ही में एक बेहद रोचक और चौंकाने वाली घटना का साक्षी बना। त्रेता युग में जिस प्रकार से डाकू रत्नाकर का हृदय परिवर्तन हुआ और वे महर्षि वाल्मीकि बन गए, उसी तरह से इस कलयुग में एक चोर के हृदय परिवर्तन ने सबको हैरान कर दिया।
दरअसल श्रृंग्वेरपुर धाम के गऊघाट आश्रम में स्थित राम जानकी मंदिर से करीब सौ वर्ष पुरानी अष्टधातु की राधा-कृष्ण की मूर्ति चोरी हो गई थी। यह घटना आठ दिन पहले की है, जब मंदिर के ताले को तोड़कर इस बेशकीमती मूर्ति को चुरा लिया गया। यह घटना सिर्फ मूर्ति चोरी की नहीं थी, बल्कि इससे मंदिर के महंत जयराम दास महाराज, भक्तगण, और पूरे संत समाज को गहरा धक्का पहुंचा था।
फलाहारी महंत जयराम दास महाराज ने तुरंत नवाबगंज पुलिस को इस चोरी की सूचना दी। पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए तुरंत जांच शुरू की और दो संदिग्धों को हिरासत में लिया। लेकिन जांच के बावजूद, कई दिन बीत जाने पर भी मूर्ति का कोई सुराग नहीं मिला। इस बीच, क्षेत्र में मूर्ति चोरी को लेकर आक्रोश बढ़ता जा रहा था और भक्तों में चिंता फैल गई थी। पर जैसे ही लोग उम्मीद खोने लगे थे, तो मंगलवार की दोपहर में एक अद्भुत घटना घटी। महंत जयराम दास महाराज को एक व्यक्ति से सूचना मिली कि हंडिया-कोखराज हाईवे के किनारे एक पेड़ के नीचे राधा-कृष्ण की मूर्ति रखी हुई है। इस सूचना के बाद नवाबगंज पुलिस तुरंत मौके पर पहुंची और चौंकाने वाली बात यह थी कि वहां सच में वह बेशकीमती अष्टधातु की मूर्ति पड़ी हुई थी। लेकिन इसके साथ ही पुलिस को एक और महत्वपूर्ण चीज मिली और वो था माफीनामा।
चोर का माफीनामा
मूर्ति के साथ मिला यह पत्र पुलिस और भक्तों के बीच चर्चा का विषय बन गया। इस पत्र को पढ़ने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि मूर्ति चोरी करने वाले चोर का हृदय परिवर्तन हो चुका था। पत्र में, चोर ने महंत को संबोधित करते हुए अपनी गलती के लिए माफी मांगी और बताया कि उसने थोड़े पैसों के लिए भगवान की मूर्ति चुरा ली थी, जो उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती थी।
"मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई थी। अज्ञानता के कारण मैंने राधा-कृष्ण की मूर्ति चुरा ली। लेकिन अब मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है और मैं इसे वापस कर रहा हूं। मेरी आपसे विनती है कि आप मुझे माफ करें और भगवान को फिर से मंदिर में स्थापित करें।" चोर ने आगे यह भी लिखा कि मूर्ति चुराने के बाद से वह लगातार अंदर ही अंदर तड़प रहा था और इस बीच उसका बेटा भी बीमार हो गया। इस घटना ने उसे आत्मग्लानि से भर दिया और उसने मूर्ति को वापस करने का निर्णय लिया।
आपको बता दें कि मूर्ति वापस मिलने के बाद पुलिस ने उसे मंदिर के महंत फलाहारी स्वामी जयराम दास महाराज को सौंप दिया। महंत ने मूर्ति का शुद्धिकरण, जलाभिषेक, और विशेष पूजा-अर्चना के बाद इसे फिर से मंदिर में स्थापित किया। इस घटना के बाद क्षेत्र में चर्चा तेज हो गई। कई भक्त इसे भगवान की अद्भुत लीला मान रहे हैं और कुछ लोगों का कहना है कि भगवान ने स्वयं चोर को मूर्ति वापस करने के लिए प्रेरित किया।
मूर्ति की पुनः स्थापना के बाद से ही मंदिर में दर्शन करने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही है। भक्तगण बड़ी संख्या में मंदिर पहुंच रहे हैं ताकि वे भगवान राधा-कृष्ण की उस विलक्षण मूर्ति के दर्शन कर सकें, जो चोरी होने के बाद भी मंदिर वापस लौट आई।
यह घटना केवल एक मूर्ति चोरी और उसके लौटने की नहीं है, बल्कि यह धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह दर्शाती है कि धर्म और आध्यात्मिकता का असर केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे कर्मों और जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है। चोर के माफीनामे ने यह स्पष्ट कर दिया कि चाहे कोई व्यक्ति कितना भी गहरे अंधकार में क्यों न हो, धार्मिकता और आध्यात्मिकता उसे सही रास्ते पर ला सकती है।
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