भारत बना वैश्विक ट्रेड का केंद्र, UK और EU में क्यों मची होड़?
भारत वैश्विक व्यापार की दुनिया में सबसे बड़ा आकर्षण बन गया है। ब्रिटेन (UK) और यूरोपियन यूनियन (EU) दोनों भारत के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) करने के लिए होड़ में लगे हुए हैं। इसके पीछे का कारण अमेरिका की बदलती नीतियां और वैश्विक व्यापार में आई अस्थिरता है।

वैश्विक व्यापार की दुनिया में इस समय एक बड़ी दौड़ चल रही है—यूनाइटेड किंगडम (UK) और यूरोपियन यूनियन (EU) दोनों भारत के साथ एक फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पर हस्ताक्षर करने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं। सवाल यह है कि इस समझौते के लिए इतनी जल्दी क्यों मची है? क्या यह सिर्फ व्यापारिक फायदे की बात है, या इसके पीछे कोई और बड़ी रणनीति छिपी हुई है?
इसका जवाब मिलता है वॉशिंगटन में। अमेरिकी राजनीति में आए हालिया बदलावों ने वैश्विक व्यापारिक रिश्तों को हिलाकर रख दिया है। ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने से अमेरिका का झुकाव प्रोटेक्शनिज्म (संरक्षणवादी नीतियों) की ओर बढ़ रहा है, जिसका सीधा असर UK और EU पर पड़ा है। जो देश पहले अमेरिका की आर्थिक छत्रछाया में थे, वे अब नए व्यापारिक साझेदार तलाशने में जुट गए हैं। इसी कड़ी में भारत एक आकर्षक विकल्प बनकर उभरा है।
ब्रेक्जिट के बाद UK की नई रणनीति
ब्रेक्जिट के बाद, UK ने यह सपना देखा था कि वह यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलकर स्वतंत्र व्यापारिक समझौते कर सकेगा और वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना सकेगा। लेकिन यह सपना उम्मीद के मुताबिक साकार नहीं हुआ। अमेरिका से व्यापार समझौते की संभावनाएं भी ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के चलते धुंधली पड़ गई हैं। ऐसे में UK को अब अपनी आर्थिक स्थिरता के लिए नए व्यापारिक रिश्तों की सख्त जरूरत है, और इसमें भारत सबसे अहम भूमिका निभा सकता है।
बीते कुछ महीनों में ब्रिटिश सरकार ने भारत के साथ FTA को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए हैं। पहले पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और जल्द से जल्द समझौते को अंतिम रूप देने की मांग की। इसके तुरंत बाद, नए प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने अपने बिज़नेस सेक्रेटरी जोनाथन रेनॉल्ड्स को भारत भेज दिया। इन तेज़ी से बढ़ते कदमों से साफ ज़ाहिर है कि ब्रिटेन किसी भी हाल में यह डील हासिल करना चाहता है।
लेकिन इतनी हड़बड़ी क्यों?
असल में, अमेरिका की आर्थिक नीतियों में हो रहे बदलावों से UK को यह एहसास हो गया है कि वह अब केवल अमेरिका पर निर्भर नहीं रह सकता। उसे अपने व्यापारिक रिश्तों को व्यापक बनाना होगा, और भारत एकमात्र ऐसा बाजार है जहां उसे दीर्घकालिक संभावनाएं नजर आ रही हैं।
EU भी इस दौड़ में पीछे नहीं
UK अकेला ऐसा देश नहीं है जो भारत के साथ FTA पर जोर दे रहा है। यूरोपियन यूनियन भी इसी दिशा में बढ़ रही है। फर्क सिर्फ इतना है कि EU इसे और भी बड़े पैमाने पर अंजाम दे रहा है। यूरोपियन कमीशन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने भारत के साथ व्यापारिक वार्ताओं को प्राथमिकता दी है। इसके लिए उन्होंने पूरे यूरोपियन कमीशन को इस मिशन में शामिल किया है। EU के इस आक्रामक रुख से साफ जाहिर है कि वे भारत के साथ व्यापारिक संबंधों को लेकर कितने गंभीर हैं।
EU को इस बात का डर सता रहा है कि अगर UK भारत के साथ पहले FTA पर हस्ताक्षर कर लेता है, तो ब्रिटेन को भारतीय बाज़ार में अधिक लाभ मिलेगा, जिससे EU के लिए बाद में मोलभाव करना मुश्किल हो सकता है। इसलिए, ब्रसेल्स भी भारत को लुभाने के लिए अपनी पूरी कोशिश कर रहा है।
क्या हैं मुख्य अड़चनें?
हालांकि, UK-India FTA अभी भी कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर अटका हुआ है। दो मुख्य अड़चनें हैं
भारतीय कामगारों के लिए वीज़ा – भारत चाहता है कि उसके पेशेवरों को UK में आसानी से काम करने की अनुमति मिले, लेकिन ब्रिटेन इस पर झिझक दिखा रहा है।
सोशल सिक्योरिटी पेमेंट्स – भारत की मांग है कि जो भारतीय नागरिक UK में काम कर चुके हैं, उन्हें वहां के सोशल सिक्योरिटी सिस्टम से लाभ मिले, लेकिन इस पर भी अभी सहमति नहीं बन पाई है।
यह पहली बार नहीं है जब भारत और UK के बीच FTA की चर्चा हो रही है। इससे पहले, बोरिस जॉनसन और लिज़ ट्रस ने "दिवाली डेडलाइन" तय की थी, लेकिन वह डील पूरी नहीं हो सकी। ऋषि सुनक के कार्यकाल में थोड़ी प्रगति हुई, लेकिन चुनावों के कारण प्रक्रिया फिर से धीमी हो गई। अब लेबर पार्टी के सत्ता में आने के बाद यह वार्ता फिर से तेज हो गई है।
हालांकि भारत इस समझौते में जल्दबाजी नहीं कर रहा है। भारत अपनी शर्तों पर वार्ता को आगे बढ़ाना चाहता है और यह सुनिश्चित करना चाहता है कि डील उसके हित में हो। हाल ही में भारत ने कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिनका सीधा असर इन व्यापार वार्ताओं पर पड़ेगा। कारों, मोटरसाइकिलों और शराब पर इम्पोर्ट ड्यूटी में कटौती। इससे न सिर्फ अमेरिका के साथ संबंध सुधरेंगे बल्कि ब्रिटेन को भी राहत मिलेगी। स्कॉच व्हिस्की पर टैरिफ में छूट देने की संभावना। यह ब्रिटेन के लिए लंबे समय से अहम मुद्दा रहा है।
कार्बन टैक्स से छूट की मांग। भारत चाहता है कि उसके स्टील और अन्य उत्पादों को ब्रिटेन के 'कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट टैक्स' से राहत मिले। भारत के लिए यह डील सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं है। यह उसकी वैश्विक व्यापार रणनीति का हिस्सा है। भारत का लक्ष्य 2030 तक अपने निर्यात को $1 ट्रिलियन तक पहुंचाना है। इसलिए, जो भी FTA होगा, वह भारत के इस व्यापक विज़न से जुड़ा होगा।
इस वक्त पूरा ध्यान इस बात पर है कि पहले FTA पर कौन हस्ताक्षर करेगा, UK या EU? अगर UK पहले यह डील कर लेता है, तो उसे भारतीय बाजार में बढ़त मिलेगी। अगर EU पहले डील करता है, तो वह अपने व्यापारिक रिश्तों को मजबूती दे सकेगा। लेकिन भारत इस स्थिति का पूरा फायदा उठा रहा है। उसने दोनों पक्षों के साथ बातचीत जारी रखी है और वह ऐसा समझौता चाहता है जो उसकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करे।
एक बात तो तय है भारत अब सिर्फ एक व्यापारिक साझेदार नहीं, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था का केंद्र बन चुका है। हर कोई इस बाज़ार में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहा है। अब देखने वाली बात यह होगी कि यह ऐतिहासिक समझौता कौन पहले हासिल करता है ब्रिटेन या यूरोपियन यूनियन?
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